Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company
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(२११)
गुण आगर, सूत्र भणावे सार ॥ तप विधि संयोगें, भांखे अर्थ विचार ।। मुनिवर गुण जुत्ता, कहीये ते उवजाय ॥ चोथे पद नमिये, अहोनिश तेहना पाय ॥ ५ ॥ पंचाश्रव टाले, पाले पंचाचार ॥ तपसी गुणधारी, वारे विषय विकार ॥ त्रसथावर पीहर, लोकमांहे जे साध ॥ त्रिविधे ते प्रणमुं, परमारथ जिणे लाध ॥६॥ अरि करि हरि सायणी, डायणि भूत वैताल ॥ सवि पाप पणासे, बाधे मंगल माल ॥ एणे समरण संकट, दूर टले ततकाल ॥ इम जपे जिनप्रभ, सूरि शिष्य रसाल ॥ ७॥ इति ॥
॥अथ आत्महित विनति छंद ।। ॥ भुजंग प्रयात वृत्तं ॥ प्रभु पाय लागी करूं सेव ताहरी, तमे सांभलो श्रीजिन राव माहरी ॥ मने मोह वैरी पराभव करे छे, चिहुं गति तणां दूःख नहि विसरे छे ॥ १॥ हुतो लक्ष चोराशी जिव जोनि मांहे, भम्यो जन्म मरण केरे प्रभावें ॥ घणां में कीधा कर्म जे धर्म छांडी, कहुं ते सर्व सांभलो स्वामी मांडी ॥२॥ मेंतो लोभे लंपट थइ कपट कीधां, घणां भोलवी परतणां द्रव्य लीधां ॥ तो पिंड पोख्यो करि जीव हिंसा, करी पारकी कूथली स्वप्रशंशा ॥३॥ मेंतो बोलोया परतणा मर्म मोसा, नहि भांखिया आपणा पाप दोषा ॥ सदा संग कीघो परनारी केरो, नहीं पालियो धर्म जिनराज तेरो ॥ ४॥ पडयो घर तणे पाप आशा विलुद्धो, नहिं सांभल्यो जिनराज उपदेश सुधो ॥ इंतो पुत्र परिवारशुं रंग रातो, नहीं जाणियो जिनवर काल जातो ॥२॥
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