Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

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Page 219
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१०) वाला ॥ रोसाला दोसाला मोसाला ते रूठा, तोसाला पोसाला हुवे पास तूठा ॥८॥ करी केसरी दाव दो जीहवाला, रणे आणव रोग महाराण पाला ॥ पडयां तास पास भांजि पास पास, घोडी सर्व त्रास आवे ते आवास ॥ ९॥ पूरे दास आशा प्रभु पास पूरी, सदा संपदा खेल सिंचे सभूरी ॥ टले आपदाने करे सार टाणे, जयकार पामे भजी जेह जाणे ॥ १० ॥ उदय उवज्झाया वदे आज पाया, विलासा सवाया सवासें वसाया ॥ लीला लहेर वाधे प्रभु नाम लीधा, बोली सर्व बाधा लह्याशं अगाधा ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री नवकारनो लघु छंद ।। ॥ सुख कारण भवियण, समरो नित्य नवकार ॥ जिन शा. सन आगम, चौद पूरवनो सार ॥ ए मंत्रनो महिमा, कहेतां न लहुं पार ॥ सुरतरु जिम चिंतित, वंछित फल दातार ॥१॥ सुर दानव मानव, सेव करे करजोड ॥ भुविमंडल विचरे, तारे भवियण कोड ॥ सुर छंदे विलसे, अतिशय जास अनंत । पेहेले पद नमियें, अरिगंजन अरिहंत ॥२॥ जे पन्नरे भेदें, सिद्ध थया भगवंत ॥ पंचमी गति पोहोता, अष्ट करम करि अंत ॥ कल अकल स्वरूपी, पंचानंतक तेह ॥ जिनवर पय प्रणमुं, बीजे पद वलि एह ॥ ३ गच्छभार धुरंधर, सुंदर शशिहर सोम ॥ करे सारण वारण, गुण छत्तीसें थोम ॥ श्रुत जाण शिरोमणी, सागर जेम गंभोर ॥ त्रीजे पद नमिये, आचारज गुणधीर ॥ ४ ॥ श्रुतधर For Private And Personal Use Only

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