Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

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Page 216
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०७) जयो देव तीर्थकरो तुंज शंभू ॥ २० ॥ इश्यां सिद्ध जिननां कह्यां सहस्र नाम, रह्यो शह झगडो लहो शुद्ध धाम ॥ गुरु श्री नयविजय बुध चरण सेवी, कहे शुद्ध पदमांहि निज दृष्टि देवी ।। २१ ॥ इति ॥ ।। अथ श्री शांतिजिन विनतिरूप छंद ॥ शारद गाय नमुं शिर नामि, हुं गाउं त्रिभुवनको स्वामी ।। शांति शांति जप सब कोइ, ता घर शांति सदा सुख होइ ॥१॥ शांति जपी जे कीजें काम, सोइ काम होवे अभिराम ॥ शांति जपी परदेश सिधावे, ते कुशले कमला लेइ आवे ॥२॥ गर्भ थकी प्रभु मारो निवारी, शांतिजी नाम दियो हितकारी ॥ जे नर शांति तणा गुण गावे, रुद्धि अचिंती ते नर पावे ।।३॥ जा नरहू प्रभु शांति सहाइ, ता नरकं क्या आरति भाइ ॥ जो कछु बछे सोई पूरे, दारिद्र दुख मिथ्यामति चूरे ॥ ४ ॥ अलख निरंजन ज्योत प्रकाशी, घट घट अंतरके प्रभु वासी ॥ स्वामी स्वरुप का नवि जाय, कहेतां मोमन अचरिज थाय ॥५॥ डार दीए सबहीं हथियारा, जीत्यां मोह तणा दल सारां ॥ नारि तजी शिवशुं रंग राचे, राज तज्युं पण साहेब साचे ॥६॥ महा बलवंत कहिजे देवा, कायर कुंथु न एक हणेवा ॥ रुद्धि सयल प्रभु पास लहीजे, भिक्षा आहारी नाम कहीजे ॥७॥ निंदक पूजककुं सम भायक, पण सेवकहीकुं सुख दायक ॥ तजी परिग्रह भये जगनायक, नाम अतिथि सवि सिद्धि लायक ॥ ८॥ शत्रुमित्र सम चित गणीजें, नामदेव For Private And Personal Use Only

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