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(१६३) मोधुरे सुमति जिणेसर, न रुचे को पर' देव ॥ खिण खिण समरे गुण प्रभुनी तणा, ए मुज लागीरे टेव ॥ मु० ॥२॥त्रणसें धनु तनु आयु धेरै प्रभु, पूरव लाख चालीश ॥ एक. सहसशुं दीक्षा
आदरी, विचरे श्री जगदीश ॥ मु० ॥३॥ समेतशिखर गिरि शिव पदवी लही, त्रण लाख वीश हजार ॥ मुनिवर पग' लख प्रभुनी संयती, त्रीश सहस वली सार । मु०॥४॥ शासनदेवी महाकाली भली, सेवें तुंबरु यक्ष ॥ श्रीनयविजय बुध सेवक भणे, होजो मुज तुज पक्ष ॥ मु० ॥ ५ ॥
श्रीपद्मप्रभ जिन स्तवन । (झांझरीआ मुनिवर धन धन तुम अवतार-ए देशी.)
कोसंबी नयरी भलीजी, पर राजा जस तात ।। मान मुसीमा जेहनीजी, लंछन कमल विख्यात ॥ पद्म प्रभुश्यु लाग्यो मुज मन रंग ॥१॥ त्रीश लाख पूरव धरेजी, आउखु नव रवि वन्न ।। धनुष अढीस उच्चताजी, मोहे जगजन मन ।। प. ॥२॥ एक सहसयुं व्रत लियेजी, समेतशिखर शिव ठाम ॥ त्रण लाख त्रीस सहस भलाजी, प्रभुना मुनि गुणधाम।।१०॥३॥शीलधारिणी संयतीजी,चार लाख वीश हजार ॥ कुसुम यक्ष श्यामा सुरीजी, प्रभु शासन हितकार ॥ ५० ॥ ४॥ ए प्रभु कामित सुरतरुजी, भवजल तरण जिहाज ॥ कवि जशविजय कहे इहांजी, सेवो ए जिनराज ॥ ५० ॥५॥
१ बीजा, २ पांच. ३ उगता सूर्य जे रातुं. ४ साध्वीभो. ५ देवी
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