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(१७७ )
शी.. ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन । नयरी वाराणसी अवतयों हो, अश्वसेन कुलचंद ॥ वामानंदन गुणनिलो हो, पासजी शिव तरु कंद ॥ परमेसर गुण नितु गाइये हो ॥१॥'फणिलंछन नव कर तनु जिनजी, सजल धनाधन वन ॥ संयम लियें शत तीनश्यु हो, सवि कहे ज्युं धन धन ॥५०॥२॥ वरष एक शत आउखु हो, सिद्धी समेत गिरीश ॥ सोल सहस मुनि प्रभुतणा हो, साहुणी सहस अडतीस ॥ १० ॥ ॥ ३ ।। धरणराज पद्मावती हो, प्रभु शासन रखवाल ॥ रोग शोग संकट टले हो, नाम जपत जपमाल ॥ ५० ॥४॥ पास आशपूरण अब मेरी, अरज एक अवधार ॥ श्रीनय विजय विबुध पय सेवक, जश कहे भवजल तार ॥ ५० ॥ ५ ॥
॥ श्रीमहावीर जिन स्तवन ॥
तारहो तार प्रभु मुन सेवक भगी-ए देशी. आज जिनराज मुज काज सिध्यां सवे, तुं कृपाकुंभ जो मुज्झ तूठो ॥ कल्पतरु कामघट कामधेनु मिल्यो, अंगगे अमियरस मेह वूठो ॥ आ० ॥ १॥ वीर तुं कुंडपुर नयर भूषण हुओ, राय सिद्धार्थ त्रिशला तनुजो।। सिंह लंछ न कनक वर्ण कर सप्त धनु, तुज समो जगतमां को न दुजो ॥ आ० ॥२॥ सिंह परे एकलो धीर
१ साप..२ हाथ. ३ पाणीथी भरेला वादळ सरखो नीलवर्ण.
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