Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 201
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९२) कामकुंभ जिम कामित पूरे, कुंभलंछन जिन मुख गमे ।म० ॥२॥ मिथिलानयरी जनम प्रभुको, दर्शन देखत दुःख शमे ॥ म० ॥३॥ घेवरभोजन सरसां प्रीस्यां, कुकस बाकस कौण जिमे ॥ म० ॥४॥ नील वरण प्रभु कांतिके आगे, मरकति मणि छवि दूर भौ ॥ म० ॥५॥ न्यायसागर प्रभु जगनो पामी, हरि हर ब्रह्मा कौण नमे ॥ म०॥६॥ ॥श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ।। ॥ घोडी ता आइ थांरा देशमे मारुजी-र देशी ॥ ॥ मुनिसुव्रत शुं मोहनी ॥ साहिबजी ॥ लागी मुज मन जोर हो ॥ शामलडी मरती मन मोहियो साहिबजी ॥ व्हालपणुं प्रभुथी सहि ॥ साहिबजी ॥ कलेजानी कोरहो ॥ शाम ॥१॥ अमने पूरण पारखं ॥ सा०॥ ए प्रभु अंगीकार हो ॥ शाम० ॥ देखी दिल बदले नहि ॥ सा०॥ अमचा दोष हजार हो ।। शाम० ॥२॥ निरगुण पण बांहि ग्रह्या ॥ सा० ॥ गिरुआ छेडे केमहो ॥शाम०॥ विषधर काळा कंठमे ॥ सा० ॥ राखे इश्वर जेम हो । शाम ॥३॥ गिरुआ साथे गोठडी ॥ सा० ॥ ते तो गुणनो हेतही ॥ शाम०॥ करे चंदन निज सारिखो ॥ सा० ॥ जिम तरुअरनो खेतहो । शाम० ॥ ४॥ ज्ञानदशा परगट थइ ॥ सा० ॥ मुज घट मिलियो इश हो। शाम ॥ विमल विनय उवज्झायनो ॥सा०॥ राम कहे शुभ शिष्य हो ॥ शाम० ॥ ५॥ इति ।। १ मनकामना, २ बहुज.२ अमारा. ३ काळा नागने. ४ महादेव. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242