Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीनदया श्री महाकाळ ॥ ७॥ वर्तमान ॥ तुज वंदन गुन ग्यान, जगतगुरु ते सवे, प्रणयुं परम निधान ॥ ५ ॥ गणधर मुनिवर प्रमुख जे, आद्य अंत परिवार ।। ते बंदु मुविचार, जगत गुरु ध्याइए, 'फणिपति लंछन सार ॥६॥ पार्श्वप्रमुख जे यक्ष छे, प्रभु तीरथ रखवाळ ॥ दीजे दीनदयाळ, जगतगुरु चतुरने, चरणरी सेवा रसाळ ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥श्री महावीर जिन स्तवन ।। ॥ गायो गायोरे शंखेश्वर साहिब गायो-ए देशी ॥ ॥ त्रिशला नंदन चंदन शीतल, सरीस सोहे शरीर ॥ गुण मणि सागर नागर गावे, राग धन्याश्री गंभीररे ॥ प्रभु वीर जिनेसर पायो ॥१॥ शासन वासित बोधे भविकने, तारे सयल संसार ॥ पावन भावना भावति कीजे, अमो पण आतम साररे ॥ प्रभु वीर० ॥२॥ नायक लायक तुम विण बीजो, नवी मळियो आकाळ ॥ तारक पारक भव भय केरो, तुं जग दीन दयाळरे ॥प्रभु०॥३॥ अकळ अमाय अमल' प्रभु ताहरो, रुपातीत विलास ॥ ध्यावत लावत अनुभव मंदिर, योगीसर शुभ भासरे प्रभु०॥४॥ वीर धीर शासन पति साधो, गातां कोडि कल्याण ॥ कीरति विमल प्रभु परम सोभागी, लक्ष्मी वाणी प्रमाणरे ॥ प्रभु वीर जिनेसर पाम्यो ।। ५ ॥ इति ॥ ॥श्री रुषभदेव जिन स्तवन ॥ ॥हाररो हीरो-ए देशी ॥ प्रथमजिणेसर पूजवा, सहियर म्हारी अंग उलट धरी आवी १ साप. २ न कळी शकाय एवो. ३ माया रहित. ४ निर्मळ, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242