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( १३७ )
प्रभुना पायजो ॥ बावन जिनाळां चोमुख बिंबने दिये, समेत - शिखर अष्टापद रचना आंयजो || विमळाचळ० ॥ ८ ॥ सकल तिरथनो नायक ए गिरि राजोयो, तारण तीरथ भवदधि मांही पोतजो || सर्वतां ए गिरिवर बहु रिद्ध पामिये, वरिये शिव पद केवळ ज्योता ज्योतजो || विमळाचळ० ॥ ९ ॥
॥ अथ श्री सिद्धचक्रजीनुं स्तवन. ॥ सिद्धचक्रने भजी रे के भवियण भाव घरी ॥ मद मानने जीए रे, के कुमता दूर करी ॥ ए आंकणी || पहेले पदे राजे रे, के अरिहंत श्वेत ॥ बीजे पदे छाजे रे, के सिद्ध प्रगट जाएं | ॥ सिद्ध० ॥ १ ॥ त्रीजे पदे पीळां रे, के आचारज कहीए || चोथे पदे पाठक रे, के नीलवरण लहीए || सिद्ध० ॥ २ ॥ पांचमे पदे साधु रे, के तप संजम सूरा | शामवरणे सोहे रे, के दर्शन गुण पूरा || सिद्ध० ॥ ३ ॥ दर्शन नाण चारित्र रे, के तप संजम शुद्ध वरो ॥ भवि चित्त आणी रे, के ह्रदयमां ध्यान धरो ॥ सिद्ध० ॥ ४ ॥ सिद्धचक्रने ध्याने रे, के संकट भय न आवे ॥ कहे गौतम वाणी रे, के अमृतपद आवे || सिद्ध० ॥ ५ ॥ इणि ॥
॥ श्री सिद्धचकनुं स्तवन बीजुं ॥
( सांभळरे तुं सजनी मारी, रजनी क्यों रमी आवी जी रे. ए देशी. )
श्री वीर प्रभु भविजनने एम कहे, भावदया दिल आणीजी रे;
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