Book Title: Canonical Literature Of Jainas Author(s): H R Kapadia Publisher: Hindi Granth KaryalayPage 37
________________ 24 THE CANONICAL LITERATURE OF THE JAINAS [ CHAP.. That śruta which is studied-recited during the first and last pauruşīst of both day and night, is styled kāliya-suya, while that sruta which is studied-recited at all times except kālavelā, is designated as ukkāliya-suya.? As already noted in the concluding lines (p. 12) of fn. 4 (p. 11), kāliya-suya is principal whereas ukkūliya-suyu is subordinate. But, in Nandi etc., the works of the former class are mentioned after the enumeration of those of the latter class. Before proceeding further, we may take a note of the works coming under the classes of kūliya-suyu and ukkaliyu-suya. A list of these works is supplied by Nundlī; and Pukkhiyasutt«c4 as well; 1 Malayagiri in his com. (p.2054) on Nandi says: “सर्वस्यापि वस्तुनो यदा स्वप्रमाणच्छाया जायते तदा पौरुषी भवति" Thus it means the period that elapses from sun-rise to the time when the shadow of an object is equal to its height. In short it practically comes to about 3 hours. 2 "तत्थ कालिय ज दिणरादीण पढमे (चरमे) पोरिसीसु पढिज्जइ। जं पुण कालवेलावज्जे पढिजइ तं उक्कालिय" So says the Cunni (p. 47) on Nandi. Akalanka in his Tattvärtharajavārtika (p. 54) observes: "स्वाध्यायकाले नियतकालं कालिकं । अनियतकालमुत्कालिक" . . 3 "उक्कालिअं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा-दसवेआलिअंकप्पिआकप्पिअंचुल्लुकप्पसुझं महाकप्पसुअंउववाइअं रायपसेणिअं जीवाभिगमो पण्णवणा महापण्णवणा पमायप्पमायं नंदी अणुओगदाराई देविदत्थी तंदुलवेआलिअं चंदाविज्झयं सूरपण्णत्ती पोरिसिमंडलं मंडलपवेसो विजाचरणविणिच्छओ गणिविज्जा झाणविभत्ती मरणविभत्ती आयविसोही वीयरागसुअं संलेहणामुयं विहारकप्पो चरणविही आउरपच्चक्खाणं महापच्चक्खाणं एवमाइ, से तं उक्कालि। से किं तं कालिअं? कालिअं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा-उत्तरज्झयणाई दसाओ कप्पो ववहारो निसीहं महानिसीहं इसिभासिआई जंबूदीवपन्नत्ती दीवसागरपन्नत्ती चंदपन्नत्ती खुडिआविमाणपविभत्ती महल्लिआविमाणपविभत्ती अंगचूलिआ वग्गचूलिआ विवाहचूलिआ अरुणोववाए वरुणोक्वाए गरुडोववाए धरणोववाए वेसमणोववाए वेलधरोववाए देविदोववाए उढाणसुए समुद्वाणमुए नागपरिआवणिआओ निरयावलियाओ कप्पिआओ कप्पवडिसिआओ पुटिफआओ पुप्फचूलिआओ वण्डीदसाओ, एवमाइयाई चउरासीई पइन्नगसहस्साई भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स तहा सखिज्जाई पइन्नगसहस्साई मज्झिमगाणं जिणवराणं चोइस पइन्नगसहस्साणि भगवओ वद्धमाणसामिरस, भहवा जस्स जत्तिआ सीसा उप्पत्तिआए वेणइआए कामयाए पारिणामिआए चउविहाए बुद्धीए उववेआ तस्स तत्तिआई पइण्णगसहरसाई, पत्तेअबुद्धा वि तत्तिमा चेव, सेत्तं कालिअं. सेत्तं आवरसयवइरितं. से तं अणंगपविद्धं । (सू० ४४)" "नमो तेसिं खमासमणाणं जेहिं इमं वाइयं अङ्गबाहिरं उक्कालियं भगवन्तं तं जहा-दसवेयालियं कप्पियाकप्पियं चुलं कप्पसुयं महाकप्पसुयं ओवाइयं रायप्पसेणइयं जीवाभिगमो पन्नवणा महापन्नवणा नन्दी अणुओगदाराइ दविन्दत्थओ तन्दुलक्यालियं चन्दाविज्झयं पोरिसिमण्डलं मण्डलप्पंवसो गणिविजाPage Navigation
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