Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 122 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका चत्तारि वि दारा एगगाधाए चेव गता भवंति। “छायाए" [गा० 461] त्ति संसत्तग्गहणी पुण, छायाए णिग्गयाएँ वोसिड। छायाऽसति उण्हम्मि वि, वोसिरिय मुहुत्तगं चिट्ठे // 463 // "संसत्त०" गाधा / कंठा / पमज्जिऊण तिक्खुत्तो त्ति, अप्पडिले हितस्स अप्पडिलेहणे अपमज्जणे दुप्पडिलेहिए दुप्पमज्जिए य पुव्वुत्तं पच्छित्तं / वोसिरंतस्स य उवगरणस्स इमा विधी उवगरणं वामगऊरुगम्मि मत्तो य दाहिणे हत्थे / तत्थऽण्णत्थ व पुंसे, तिहिं आयमणं अदूरम्मि // 464 // "उवगरणं०" गाधा / दंडगं रयहरणं च वामे ऊरुम्मि ठवेति, मत्तओ दाहिणहत्थे, डगलया 'डब्बहत्थे / तिहिं ति णावापूरेहिं आयमति णिल्लेवेति / णावा पसती ! जइ दूरे आयमती उड्डाहो / कोति पासित्ता चिंतेति–ण चेव णिल्लेवितं तो गतो / जति तं पढमं थंडिल्लं अविहीए वच्चति तो इमं पच्छित्तं छक्काय चउसु लहुगा, परित्त लहुगा य गुरुग साहारे। संघट्टण परियावण, लहु गुरुगऽतिवायणे मूलं // 465 // "छक्काय०" गाधा / पुढविक्कायं संघट्टति मासलहुं, परियावेति मासगुरुं, उद्दवेति चउलहुगं / एवं जाव 'परित्त' वणस्सतिकाए / एवं एकेकेणं दोहिं मांसगुरूए आढवेत्ता चउगुरूए ठाति, एवं जाव अट्ठहिं सपदं / अणंतवणंस्सइकाए मासगुरुए आढवेत्ता चउगुरुए ठाति / एवं जाव सत्तहिं दिवसेहिं सपदं / बेइंदिए चउलहुए आढवेत्ता छल्लहुए ठाति / एक्कसि जाव छहिं सपदं / तेइंदिए चउगुरूए आढवेत्ता छगुरूए ठाति, पंचहिं सपदं.। चउरिदिए छल्लहुए आढवेत्ता छेदे ठाइ, चउहिं सपदं / एगं पंचेंदियं संघट्टेति छग्गुरु, परितावेति छेओ, उद्दवेइ मूलं, तिहिं वाराहिं चरिमं / 'वज्जण'त्ति गतं / इयाणि "अणुण्णा कारणविहीए [गा० 419] परिपाट्या इत्यर्थः / पढमिल्लुगस्स असती, वाघातो वा इमेहिँ ठाणेहिँ। पडिणीय तेण बाले, खेत्तुदग णिविट्ठ थी अपुमं // 466 // "पढमिल्लुग०" गाधा / भवे कारणं ण गच्छेज्जा वि पढमं थंडिलं / असति त्ति नत्थि पढमं थंडिलं / अधवा होतयं पि इमेहिं वाघातितं-पडणीतो तत्थ अच्छति / पंथे वा तेणया दुविधा-उवगरणतेणा सरीरतेणा य / वाला वा तत्थ होज्जा सप्पादी / खेत्तं वा जातं, उदएणं वा 1. दव्व० पू० 2 /
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