Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 190 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका भणंति-जावतियं अधिज्जति तावतियं उद्दिसति / जति वि अज्झयणाणि दो तिण्णि चत्तारि परेण वा उट्ठवेति तो वि उद्दिसिज्जेज्जा / 'उकाल-असज्झायं' ति गयं / इदाणि 1 अवक्खेवे' त्ति / तं भण्णति आहारे उवगरणे, पडिलेहण लेव खेत्तपडिलेहा / अप्पाहारो परिहार मोअ जह अप्पणिद्दो अ // 750 // "आहारे०" गाधा / आहारे त्ति, अस्स विभासाहिंडाविति ण वा णं, अहवा अण्णट्ठया ण सो अडइ। पेहिति व से उवहिं, पेहेइ व सो ण अण्णेसि // 751 // "हिंडाविति०" पुव्वद्धं / जति असंथरणं तो अण्णेसिं २ण आणेति / सो अप्पणा जं भुंजति तत्तियमेत्तं अडति / उवगरणे पडिलेहगेत्ति / 'पहिति' पच्छद्धं / कंठं / लेव त्ति / अस्सं विभासा एमेव लेवगहणं, लिंपइ वा अप्पणो ण अण्णस्स / खेत्तं च ण पेहावे, ण यावि तेसोवहिं पेहे // 752 // "एमेव०" पुव्वद्धं / कंठं / 'खेत्तं च' पच्छद्धं / कंठं / तेसिं ति खेत्तपडिलेहगाणं / : अप्पाहारो त्ति देंति पणीयाहारंण य बहुगं मा हु जग्गतोऽजिण्णं / मोआइणिसग्गेसु अ, बहुसो मा होज्ज पलिमंथो // 753 // देंति पणीया० पुव्वद्धं / कंठं / परिहारेत्ति सण्णा, मोयत्ति काइयं / मोयादि पच्छद्धं / कंठं / जध अप्पणिद्दो य होति पणीताहारादिणा तधा कातव्वं / एवं उस्सारिते जं तं कज्जं तं कारविज्जति। एवं द्वादशप्रकारे कल्पिकद्वारे अपदिष्टे तदनुषंगाच्च चोदकेन चोइए उस्सारकप्पिए त्ति गतं / 'कप्पिए' त्ति दारं गतं / / इदाणि अचंचले य त्ति दारं / चंचलो जो सो णारिहति अणुओगं सोउं / सो चंचलो चउव्विहो / तं जहा गति-ठाण-भास-भावे, लहुओ मासो उ होइ एक्कक्के / आणाइणो य दोसा, विराहणा संजमाऽऽयाए // 754 // "गति-ठाण" गाधा / चउण्ह वि मासलहुं पच्छित्तं / आणादी / संजमविराधणा / 1. अव्वक्खेवे० पा० / 2. पा० प्रतौ नास्ति /
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