Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 188 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका तस्स 4 / 'ओग्गहणम्मि वि गुरुग'त्ति / जति उग्गहणसमत्थस्स वि मेधाविस्स णिक्कारणे उस्सारेति तो वि 4 / किं कारणं ? सो मेधावी आणुपुव्वीए चेव पढिहिति / अहवा 'उग्गहणम्मि वि गुरुग' त्ति जस्स जोग्गस्स कारणे उस्सारिज्जति सो जति वि उस्सारकप्पे समयं सुत्तं अत्थं च ओगिण्हति / अपि शब्दात् जति वि ण ओगिण्हति दुम्मेहत्तणेण, तो वि अकालो असज्झाइयं वक्खेवो वा ण कातव्वो / जति करेति 4 / 'उकालमसज्झाय ऽवक्खेवे 'त्ति , तं उवरिं भण्णिहिति / अधवा 'उग्गहणम्मि वि गुरुग'त्ति, जो ओग्गहणसमत्थो उत्तममेधावी, अपिः पदार्थसम्भावने / जावतियं उद्दिसति तं सव्वं सुत्तं समं अत्थेण उट्ठवेति, पदाणुसारी वा बहुविधमवि अणुसरति, तस्स उस्सारेतव्वं / जति ण उस्सारेति 4] / जं तं पुव्वभणितं तं चिट्ठतु कारणं / तं इदाणि भण्णति गच्छो अ अलद्धीओ, ओमाणं चेव अणहियासा य। .. गिहिणो अ मंदधम्मा, सुद्धं च गवेसए उवहिं // 743 // "गच्छो०" गाधा / गच्छो अलद्धीतो आहारोवहि-सेज्जासु, ओमाणं च सपक्खपरपक्खओ, ते य साहुणो ण सकेंति सीतं छुहादीणि वा अधियासित्तए / गिहत्था य मंद-धम्मा अपण्णविता ण देंति / सुद्धो य उवही गवेसियव्वो / एरिसे वि कज्जे हिंडतु गीयसहाओ, सलद्धि अह ते हणंति से लद्धि / तो एक्कओ वि हिंडति, आयारुस्सारियसुअत्थो // 744 // "हिंडतु०" गाधा / 'ते' त्ति गीतत्था जति तस्स लद्धि उवहणंति तो उस्सारितसुत्तत्थो एक्कओ हिंडति / आह-तो किं कोइ अण्णस्स पुण्णे उवहणति ? उच्यते-आमं / किं ते ण सुओ पंचसतभिक्खू ? भिक्खु विह तण्ह वद्दल, अभागधेज्जो जहिं तहिं ण पडे। दुग-तिगमाईभेदे, पडइ तहिं जत्थ सो णत्थि // 745 // "भिक्खु" गाधा / कोइ किर पंचसतिओ सत्थो अडविं पवण्णो / तत्थ य एगो रत्तपडो पंचण्ह वि सयाणं भग्गे उवहणति / सो य सत्थो तहाए परद्धो। दूरे य अब्भवद्दलयं वासति, तेसिं उवरिं ण पडति / ते दुधा भिण्णा / इतरेसिं पुव्विल्लाणं मज्झे मिलिओ। सव्वत्थ पडति, जत्थ सो तत्थ ण पडति / जाव णिव्वेडितो एक्कओ जाओ / जत्थ सो तत्थ ण पडति। एवं परस्स भग्गे उवहणंति / सो पुण कधं उप्पाएति ? / उच्यते भिक्खं वा वि अडतो, बिईय पढमाएँ अहव सव्वासु। सहिओ व असहिओ वा, उप्पाए वा पभावे वा // 746 // 1. मिलिया पू० 2 /
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