Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ भाष्यगाथा-७३३-७४२] 187 जाणओ सो अभिगओ भवति / जो वा अब्भुवगतो आयरियाणं १अमुयी इत्यर्थः / पडिबद्धो सज्झाए गुरूहि वा, णिएल्लगा वा से पव्वतियगा, तेसु पडिबद्धो / संविग्गे य सलद्धिए [गा० 736] त्ति। अनयोर्व्याख्या संविग्गो दव्व मिओ, भावे मूलुत्तरेसु उ जयंतो। लद्धी आहाराइसु, अणुओगे धम्मकहणे य // 738 // "संविग्गो०" गाधा / कंठा / अवट्ठिते य [736] पच्छद्धस्स विभासालिंग विहारेऽवट्ठिओं मेरामेहावि गहणओ भइओ। पडिबुज्झइ जं कत्थई, कुणइ अ जोगं तदढुस्स // 739 // "लिंग विहारे०" गाधा / अवद्वितो णाम जो लिंगे विहारे य अवस्थितो नाऽनवस्थितः स्थिर इत्यर्थः / मेधावी दुविधो-मेरामेधावी य, गहणमेधावी य / मेरामेधाविस्स उस्सारिज्जति / सो पुण गहणमेधावी वा होज्जा इतरो वा, एस भयणा / दुविधस्स वि एतस्स उस्सारिज्जति कारणे / पडिबुज्झी नाम जं से कहिज्जति तं सव्वं परियच्छति / जोगकारओ नाम तस्मिन्नेव सूत्रार्थे गृहीतव्ये जोगं करेति ण वि पमादेति / इमा अण्णपरिवाडिए गाधारे - "पुव्वभणितं तु जं भणति" कारग गाहा / अभिगय गाधा [736] (?) / अभिगय थिर संविग्गे, गुरुअमुई जोगकारए चेव। ... दुम्मेहसलद्धीए, पडिबुज्झी परिणय विणीए // 740 // "अभिगय०" गाधा / जो वा दुम्मेहो वि सलद्धितो परिणओ वएण परिणामओ वा तस्स उस्सारिज्जति / आयरियवण्णवादी, अणुकूले धम्मसड्डिए चेव / एतारिसे महाभागे, उस्सारं काउमरिहइ // 741 // "आयरिय०" गाधा / आयरियाणं वण्णं वयति / अणुकूलो य आयरियाणं चेव। जे वा पूयणिज्जा / सेसं कंठं / एरिसाणं उस्सारेतव्वं / अणभिगतमाइआणं, उस्सारितस्स चउगुरू होति / उग्गहणम्मि वि गुरुगाऽकालमसज्झायऽवक्खेवे // 742 // "अणभिगत०" गाधा / आदिग्गहणेणं सव्वे पदा गहिता / तं जधा-अणभिगए अप्पडिबद्धे असंविग्गे अलद्धिते य अणवट्ठिए अमेधावी अपडिबुज्झी अजोगकारए अपरिणते अविणीए आयरियाणं अवण्णं वदति अणणुकूले णवि धम्मसद्धीए / एतारिसाणं जो उस्सारेति 1. सम्मत पा० / 2. गाधा / अभिगय गाधा / पुव्वभणितं० पा० /
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