Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ भाष्यगाथा-७६५-७७३] -एमेव उवहि सेज्जा, गुणोवगारी उ जस्स जं होइ। सो तेण जोययंतो, तदभावे तिंतिणो होइ // 769 // "एमेव०" गाधा / 'एमेव'त्ति उवधि-सेज्जासंजोयणा वि एवं चेव दुविधा-अंतो बाहिं च / उवधीए बाहिं संजोयणा-अंतरकप्पं सुंदरं लद्धं अणुरूवं से उण्णियं कप्पं मग्गति / अंतोसंजोयणा-कृष्णकंबलीए पंडरे सरडे देति / सेज्जाए बाहिं संजोयणा-सुंदरं पडिस्सयं लभेत्ता मीरं(?सीरं?) मग्गति वरं ताए अड्डितियाए सोभंतो उवस्सयो / अंतोसंजोयणा-लिंपइ, सेडियाए य उल्लाएति / संथारयं पि लभित्ता सुंदरं तयणुरूवं अत्थुरणयं मग्गति / एस बाहिं संजोयणा। अंतोसंजोयणा-सुंदरं पत्थरेति, सोभति त्ति काउं / एरिसं जति आहारादी ण लब्भति, ताधे तिडतिडेति–हा ! णत्थि, इत्यादि / तितिणिए त्ति गतं / इदाणि चलचित्ते त्ति दारं / चलचित्तो भावचलो, उस्सग्गऽववायतो उजो पुट्वि / भणितो सो चेव इहं, गाणंगणियं अतो वोच्छं // 770 // "चलचित्तो०" गाधा / कंठा / इदाणि गाणंगणिए त्ति दारं / छम्मास अपूरित्ता, गुरुगा बारससमासु चउलहुगा / . तेण परं मासलहू, गाणंगणि कारणे भइतो // 771 // .. "छम्मास०" गाधा / छम्मासे अपूरेत्ता गणातो गणं संकमति 4 / परेणं छण्हं मासाणं, जाव बारसवासाणि, एत्थंतरे संकमति चउलहुगा / परेणं बारसण्हं वासाणं णिक्कारणं संकमइ / / गाणंगणि कारणे भतितो त्ति सेवितो साधुणा / जं भणियं कारणे अंतोछण्हं 'वासाणं परेण वा * गणातो गणं संकमति अपायच्छित्ती भवति / इदाणि दुब्बलचरित्ते त्ति दारं / मूलगुण उत्तरगुणे, पडिसेवइ पणगमाइ जा चरिमं / धिति-वीरियपरिहीणो, दुब्बलचरणो अणट्ठाए // 772 // "मूलगुण" गाधा / कंठा / को दोषः ईदृशस्य रेदाने ? / उच्यतेपंचमहव्वयभेदो, छक्कायवहो अतेणऽणुण्णाओ। सुहसील-ऽवियत्ताणं, कहेइ जो पवयणरहस्सं // 773 // "पंचमहव्वय०" गाधा / सुखं शीलं भजतीति सुखशीलं, कांक्षतीत्यर्थः / न व्यक्तोऽव्यक्तः / श्रुतेन वयसा चेत्यर्थः / कधं पुनस्तेन पञ्चमहाव्रतभेदः षट्कायवधश्चानुज्ञातो 1. मासाणं पू० 1 विना / 2. दीपयंते पू० 1-2 /
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