Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ भाष्यगाथा-७६०-७६४] पंरिसाइ अपरिसाई, दव्वे भावे य लोग उत्तरिए / एक्केको वि य दुविहो, अमच्च बडुईऍ दिटुंतो // 763 // __ "परिसाइ अपरिसा०" गाधा / सो परिस्साई अपरिस्साई य दुविधो-दव्वे य भावे य। १दव्वे परिस्साई घडादिणो / अपरिस्साई दोद्धियादीणि / भावे वि परिस्साई य अपरिस्साई य दुविधा-लोइया लोउत्तरिया य / एक्केको वि य दुविध त्ति / लोइया परिस्साई य अपरिस्साई य, एवं लोगुत्तरिया वि / तत्थ लोइए परिस्साइम्मि इमो अमच्चदिटुंतो एगो राया / तस्स कन्ना गद्दभस्स जारिसा / सो णिच्चं खोलाए अमुक्कियाए अच्छति। सो अमच्चेण पुच्छिओ-कि तुब्भे भट्टारयपादा णिच्चं खोलाए आविद्धियाए अच्छध ? ण. २कस्सइ सीसं कण्णा य दरिसेध ? / रण्णा सिटुं / रहस्सभेदो न कातव्वो / तेण अणहियासमाणेणं अडवि गंतुं रुक्खढोड्डरेरे मुहं छोणं भणितं-गद्दभकण्णो राया गद्दभकण्णो राया। तं रुक्खं अण्णेण छेत्तुं वादिन कतं / संपत्तीए य रण्णो पुरतो पढमं पवाइतं / तं वज्जंतं भणतिगद्दभकण्णो राया, गद्दभकण्णो राया। रण्णा अमच्चो पुच्छितो-तुमे परं एयं रहस्सं णायं, कस्स ते कधितं ? / अमच्चेण सब्भावं सिटुं / एस लोइओ परिस्साई। ___ लोउत्तरिओ जो अणधियासेमाणे पुच्छितो वा अपुच्छितो वा अपरिणताणं अववादपदाणि कधेति / एरिसस्स सुत्तं देइ ह्र / अत्थं देति 4 / इमं लोइए अपरिस्साइम्मि उदाहरणं राया सेट्टी अमच्चो आरक्खिओ मूलदेवो य एगाए पुरोहियभज्जाए बडुइणीए अज्झोववन्ना। ताए सव्वेसिं संकेतओ दिण्णो / ते आगता / दारे ठिता। ताए भण्णंति-जति महिलारहस्सं जाणध तो पविसह / ते भणंति-ण याणामो / मूलदेवेण भणितं-अहं जाणामि। ताए भणितं-पविसह त्ति / पविट्ठो / पुच्छितो-किं महिलारहस्सं? तेण भणितं-मारिज्जतेहिं वि अण्णस्स न कधेतव्वं / त्वं विदग्धः कामुकः / तुट्ठाए सव्वरत्तिं रामितो। कल्ले रण्णा पुच्छितो मूलदेवो-किं तं महिलारहस्सं? मूलदेवो भणति-अहं एतं उल्लावं पि ण याणामि / 'अवलवति'त्ति वज्झो आणत्तो, तध वि ण कधेति / धिज्जातिणीए आगंतुं रण्णो कधितं जधा-एतं चेव महिलारहस्सं, जं सरीरच्चाए वि ण कस्सई सीसति / एस लोइओ अपरिस्साई। - लोउत्तरिओ सुणेत्ता उद्रुितं संतं जइ कोइ पुच्छति-कि एतं रहस्सितं कहिज्जति ? / भणति-चरणकरणं साधूणं वण्णिज्जति / एरिसो अपरिस्सावी / एतस्स सुत्तं ण देति 4 / अत्थं ण देति 4 / अपरिस्साई त्ति दारं गतम् / जे विदु त्ति विदु जाणए विणीए, उववाए जो उ वट्टए गुरूणं / तव्विवरीयऽविणीए, अदित दिते अलहु-गुरुगा // 764 // .. 1. दव्वपरि० पू० 1-2 / 2. कासइ पू० 2 / 3. ०ढोडरमुहं पू० / 4. वईए पू० 2 / 5. कहिज्जइ पू० 2 /
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