Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ भाष्यगाथा-७९३-७९९] 201 दोण्ह वि जणाणं। अध ण पाढेति तो उवज्झाओ सुद्धो / चउत्थो-अणणुण्णातं अणणुण्णातो वाएति / दोण्ह वि मासलहुं / अविणयो भवति / आदिग्गहणेणं अणवत्थादओ दोसा / अणुण्णाए त्ति दारं गतं / इदाणि भावतो परिणामए त्ति दारं / भावग्रहणात् शेषग्रहणं / परिणाम अपरिणामे, अइपरिणाम पडिसेह चरिमदुए। अंबाईदिटुंतो, कहणा य इमेहिँ ठाणेहिं // 795 // "परिणाम अपरिणामे" गाधा / परिणामग्रहणात् परिणामए अपरिणामए अतिपरिणामए तिण्णि पुरिसा परूविजंति / तत्थ परिणामओ जो दव्व-खेत्तकय-काल-भावओ जं जहा जिणक्खायं / तं तह सद्दहमाणं, जाणसु परिणामयं साधुं // 796 // "जो दव्वखेत्त०" गाधा / जो दव्वकतं खेत्तकतं कालकतं भावकतं जं जेण प्रकारेण जिणेहिं कधितं तं सद्दहति सो परिणामगो णातव्वो / दव्वतो सचित्ताचित्त-मीसए दव्वे सद्दहति / जारिसे कज्जे कप्पंति वा ण वा?। खेत्ततो-अद्धाणे जणवते वा आयरियव्वं तं सद्दहति / कालओदुब्भिक्ख-सुभिक्खेसु जो कप्पो.। भावतो-गिलाणस्स आगाढाणागाढेसु जो कप्पो तं सद्दहति / एरिसो जो सो परिणामतो भवति णातव्वो य / ... इमो अपरिणामओ जो दव्व-खेत्त-कय-काल-भावओ जं जहा जिणक्खायं / ते तह असद्दहंतं, जाण अपरिणामयं साहुं // 797 // "जो दव्व०" गाधा / एते चेव दव्व-खेत्त-काल-भावे जहा भणिए जो ण सद्दहति, . सो अपरिणामओ / इमो अइपरिणामओ जो दव्व-खेत्तकय-काल-भावओ जं जहिं जया काले / तल्लेसुस्सुत्तमई, अइपरिणामं वियाणाहि // 798 // ___"जो दव्व" गाहा / एतेसु चेव पुव्वपरूवितेसु दव्वादिसु जो तल्लेस्सो-अच्छति / पेच्छामि ताव एत्थ किंचि णिस्साणपदं तो तं धणितमवलंबिस्सामि / उस्सुत्तमती णाम अववातसुत्तातो अतिरेगा मती जस्स सो उस्सुत्तमती / अपरितुस्समाणो आयरिओ पुणो लक्खणगाधं पढति परिणमति जहत्थेणं, मई उ परिणामगस्स कज्जेसु / बिइए ण उ परिणमई, अहिगं मइ परिणमे तइओ // 799 //
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