Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 212 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका 754 184 493 757 184 496 705 560 257 129 . 178 144 702 557 445 117 182 723 281 440 720 279 435 75 440 116 222 कज्जविवत्तिं दृटुं कडकरणं दव्वे सा० कतकितिकम्मो छंदेण कतमकते गिहिकज्जे कतिएण सभावेण व कप्पव्ववहाराणं कप्पेऊणं पाए कमजोगं ण वि जाणइ कमभिण्ण वयणभिण्णं कलुस दवे असती य कंकडए को दोसो काउं सरयत्ताणं काऊण णमोक्कारं काएसु उ संसत्ते कारकगतो चउत्थे कारणजिसेवि लहुसग कारणे सपाहुडि ठिया कालजइच्छविदोसो कालमकाले सण्णा कालम्मि बितितपोरिसि कालस्स समयरूवण कालाइक्वंते लहु० 521 134 1 2 592 1 329 379 571 75 282 443 164 164 163 597 594 152 189 कालातिवंतोवट्ठाण कालियसुआणुओगम्मि कालेणुवक्कमेण व कालो सिं अइवत्तइ कास तऽपुच्छियम्मी कासातिमाति जं पुव्व० किंचिम्मत्तग्गाही किं ते पित्तपलावो / किं दमओ हं भंते ! किं दोमि त्ति णरवई किं पि त्ति अण्णपुट्ठो कीस ण णाहिह तुब्भे कुप्पवयणओसण्णेहि 596 747 111 803 626 616 371 802 636 501 726 104 147 569 280 116. . 438 40 40 163 153 .(कालातीते लहुगो)। 593 744 30 110 202 800 161 623 158 613 102 369 202 799 163 130 * 498 183 161 624 94 341 723 627 343
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