Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 212
________________ भाष्यगाथा-७५०-७५९] 191 गतिचंचलस्स दवद्दवाए वच्चंतस्स आतविराधणा-पडेज्जा / देवता वा छलेज्जा। पडिचोयणातो वा असंखडे अट्ठिभंगादी / एवं सेसेसु वि आत-संजमाणं विराधणा वत्तव्वा / गति-ठाणचंचलाणं इमा विभासादावद्दविओ गइचंचलो उठाणचवलो इमो तिविहो / कुड्डादऽसई फुसइ व, भमइ व पाए व विच्छुभइ // 55 // "दावद्दविओ०" गाधा / कंठा / भासाचपलो चउहा, अस त्ति अलियं असोहणं वा वि / असभाजोग्गमसब्भं, अणूहिउं तं तु असमिक्खं // 756 // "भासाचपलो" गाधा / १भासाचवलो चतुद्धा / तं जधा-असप्पलावी, असब्भप्पलावी, असमिक्खियप्पलावी, अदेसकालप्पलावी / आदिल्लाणं तिण्हं विभासा-अस त्तीत्यादि, गाधा-कंठा / ऊहितं जं पुव्वं बुद्धीए पासित्ता, तओ वक्कमुदाहरे। अचक्खुओ व्व णेयारं, बुद्धिमण्णेउ ते गिरा // 1 // एतवतिरित्तं अणूहितं, तं असमिक्खं पलविउं सीलं जस्स सो असमिक्खिय-पलावी। अदेसकालप्पलावी इमो कज्जविवत्तिं दर्दू, भणाइ पुट्वि मए उविण्णायं / एवमिदं तु भविस्सइ, अदेसकालप्पलावी उ॥७५७॥ "कज्जविवत्ति०" गाधा / कंठा / भावचवलो इमोजं जं सुयमत्थो वा, उद्दिढ़ तस्स पारमप्पत्तो / अण्णण्णसुयदुमाणं, पल्लवगाही उ भावचलो // 758 // "जं जं सुय०" गाधा / कंठा / भवे कारणं चंचलत्तणं पि करेज्जातेणे सावय ओसह, खित्ताई वाइ सेहवोसिरणे / आयरिय-बालमाई, तदुभयछेए य बिइयपयं // 759 // "तेणे०" गाधा / तेण-भएणं सावय-भएणं वा दवद्दवाए गच्छेज्जा ओसहहेउं वा / ण य पच्छित्तं / २ठाणचंचलत्तणं पि करेज्जा खित्तचित्तो, आदिग्गहणेणं दित्तचित्तो जक्खाइट्ठो उम्मायपत्तो वा / न य पच्छित्तं / भासाचंचलत्तणं पि करेज्जा / वातिस्स बुद्धि परिभूय अस त्ति अलियंपि भणेज्जा / सेहो वा पंडगादि वोसिरियव्वो। सो असभाजोग्गादिणा खरफरुसेहिं य 1. भासाचंचलो पा० / 2. ठाणे चं० पू० 1 / ठाणं चं० पा० / 3. सो असब्भवातिजोगादिणा पू० 1 /

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