Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 142 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका एमेव चारण-भडे, चारण उडुंचगा उ अहिगतरा / णिच्छूढा व पदोसं, तेणाऽगणिमाइ जह बडुया // 553 // "एमेव चा०" गाधा / 'एमेव' त्ति बडुएहिं जे दोसा ते चारण-भडेहिं वि / णवरं चारणेसु इमे अहिययरा दोसा, ते पवंचहेडं संजएहितो उडुंचए मग्गंति चेव, तेण ते चियत्ते ण चेव एगतओ अच्छेज्जा / सेसं कंठं / इदाणिं मरणं च तिरिय-मणुयाणं च आएसा य, एते दारे एगढे भणति छड्डणे काउड्डाहो, घाणारिस सुत्तऽवण्ण अच्छंते / इति उभयमरणदोसा, आएस जहा बडुगमाई // 554 // "छड्डुणे काउ०" गाधा / सुण्णं वसहिं पासित्ता तिरिओ गोण-सुणगादी अणाहमणूसो वा पविसित्ता मरेज्जा / तं जति असंजतेणं छड्डावेंति तो छज्जीवणिकायविराधणा / अह अप्पणा छड्डेति तो उड्डाहो / कोति जाणेज्जा एतेहिं चेव मारिओ त्ति / दुगुंछा वा भवेज्जा'असुइणो'त्ति / अह एतेसिं दोसाणं भीता णवि छडेति, णावि छडावेंति, तो रुहिरगंधेणं णासाऽरिसाओ जायंति संजयाणं / अहवा वि असज्झातियं ति काउं सुत्तपोरुसिं ण करेंति ह। अत्थपोरुसिं न करेंति ह / सुत्त-अत्थपोरुसिं अकरेंताणं सुत्तं णासति ह्व / 4, अत्थो नासति / / 4, अवण्णो य भवति-'सुसाणे अच्छंति' त्ति, 'इति' उपप्रदर्शनार्थे / एते अच्छंते य छड्डिज्जंते य दोसा भवंति / 'उभय' तिरिय-मणुयमरणे / “आएस''त्ति पाहुणता, तेसु जे बडुग-चारणभडाणं दोसा ते, मरणं च तिरिय-मणुयाणं / आदेस त्ति य गतं / . इदाणिं वाल-णिकेयणे य दो दारा एगट्ठा भण्णंति अधिगरण मारणाऽणीणियम्मि अच्छंते वालि आतवहो / तिरितीय जहा वाले, सूतिमणुस्सीऍ उड्डाहो // 555 // "अधिगरण०" गाधा / वालो नाम सप्पो / सुण्णं दटुं सो पविट्ठो होज्जा, ताधे आगता समणा / जति णीणेति तो अधिकरणं / कधं ? हरितादीणं मझेणं जाति, सुण्णे वा गिहे पविट्ठो डसेज्जा तप्पयोगेणं / अधवा मारिज्जेज्जा / अध एअदोसभीतारे न णीणेति तो खतिए आतविराधणाऽणागाढादि तण्णिप्फण्णं पच्छित्तं / एते ताव वाले दोसा / अध णिक्केयणे-जति तिरिक्खी णिक्केतिज्जति सा, णियमादितो जे वाले दोसा, अधिकरणं, ३बिल्लगमारणा आतविराधणा भवति / अध "मणुस्सी" सूतित्ति पसूता, तो एतेसिं चेव एतं ति काउं उड्डाहो, णिक्कालिज्जं 1. // 0 // पू० 2 / 2. अध एयभीया पा० / 3. चिक्खल्लगसारणत्ति आयवि० पू० 1 /
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