Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 174 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका जति नाम कस्सइ रत्तिं होज्जा / एत्थ पासवणं, अण्णत्थ ण वि / एत्थ अच्छीहामो काएइ वेलाए लिहंता वा, रंगेंता वा भाणे / एवं ठविते मितोग्गहं चेव अधिट्ठितं / ते जा कता मेरा तं चेव अधिट्ठयंति / अकए पुण अण्णे वि जे तं ओगासं भंजंति सण्णादीहि तं पि समणाणं चेव उवरिएणं 'एति / 'सो' त्ति सागारिओ, अण्णो णाम जो तस्स णिएल्लओ। एस खेत्तोग्गहो गओ। इदाणि दव्वोग्गहो चेयणमचित्त मीसग, दव्वा खलु उग्गहेसु एएसु। जो जेण परिग्गहिओ, सो दव्वे उग्गहो होइ // 684 // "चेयणमचित्त०" गाधा / कंठा / 'एतेसु'त्ति देविंदोग्गहादिसु / इदाणि कालोग्गहो। दो सागरा उ पढमो, चक्की सत्त सय पुव्व चुलसीई। सेसणिवम्मि मुहुत्तं, जहण्णमुक्कोसए भयणा // 685 // "दो सागरा०" गाधा / पढमो णाम देविंदोग्गहो / चक्कवट्टिउग्गहो जहण्णेणं सत्तवाससता बंभदत्तस्स / उक्कोसेणं चउरासीतिं पुव्वसतसहस्साई भरहस्स / 'सेसणिव'त्ति चक्कवट्टि मोत्तुं जे अण्णे रायाणो तेसिं जहण्णओ कालोग्गहो अंतोमुहत्तं, एत्तियं से आउयं होज्जा। अधवा एत्तिएणं कालेणं फेडितो होज्जा / 'उक्कोसए भयण'त्ति / अंतोमुहत्तओ परेणं समयाधियातो ठितीतो जाव चउरासीति पुव्वसयसहस्साइं / एत्थंतरे जेणं रण्णा जं आउयं णिव्वत्तितं, जो वा जत्तियं कालं रज्जाधिवच्चं करेति, तस्स तस्स सो उक्कोसओ कालोग्गहो भवति / एतेण कारणेणं भयणा भवति / एवं गहवइ-सागारिए वि चरिमे जहण्णओ मासो। उक्कोसो चउमासा, दोहि वि भयणा उकज्जम्मि // 686 // "एवं०" गाधा / एवं गहवइ-सागारियाण वि कालोग्गहो जहण्णओ उक्कोसओ य जहा सेसनृपस्येति / चरिमो नाम साहम्मिओग्गहो सो जहण्णेणं एक्को मासो उडुबद्ध मासकप्पेणं वसमाणाणं / चत्तारि मासा वासासुरे वसमाणाणं / दोसु वि भयणा ओ कज्जम्मि त्ति जहण्णए य उक्कोसए य / साहम्मिउग्गहे असिवादीहिं कारणेहिं कयाइ मासो चउमासो वा ण चेव पूरिज्जेज्जा, अइरित्तो वा होज्जा / गओ कालोग्गहो / इयाणि भावोग्गहो। 1. ०एणं ति पू० 2 / 2. वासावासेसु पू० 1 / /
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