Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 182 बृहत्कल्पचूर्णिः // [ पीठिका प्राप्तमाह चोदक:-भगवं ! उस्सारकप्पिओ अत्थि ? आयरिओ भणइ, णत्थि / आह-तो तस्स कतो णामं ? आयरिओ भणति–जो उस्सारेति तस्स ह्वा / आणादीया दोसा / आदिग्गहणेणं आणाऽणवत्थ मिच्छा विराहणा संजमे य जोगे य। अप्पा परो पवयणं, जीवणिकाया परिच्चत्ता // 719 // "आणा-ऽणवत्था०" गाधा / आणा सामिणो ण कता, अणवत्था तं पासित्ता अण्णे वि उस्सारेहिंति उस्सारावेहिति य / मिच्छत्तं कधं ? उच्यते 'पुटिव मलिया उस्सारवायए आगए पडिमिलिंति। पडिलेह पुग्गलिंदिय, बहुजण ओभावणा तित्थे // 720 // "२पुवि मलिया०" गाधा / केयि वायगा / सावगगामं गता विहरंता / तत्थ तेहिं. अण्णउत्थिता णीसटुं चमढिया / ते य ततो वायगा विहरंता अण्णत्थ कत्थ वि गता / तेसु गए वायगेसु ते अण्णउत्थिया ते सावए वायं मग्गेति / सावएहिं भणितं-जाव वायगा एंति गणिणो वा / अध अण्णया उस्सारकप्पियवायगो आगतो सीसपरिवारो अत्तसमुक्कसेण फुट्टमाणो / ताधे ते सावगा ते अण्णउत्थिए गंतुं भणंति-तुब्भेहिं तदा वादो मग्गितो / अम्हेहि य भणितं-जाव वायगा एंति / ते आगता, करेह वादं / ताधे तेधि अण्णउत्थिएहिं एगो पडिलेहगो पत्थवितो / किं पडू वायगो ण व त्ति ? तेण आगंतु वायगो भण्णति-परमाणुपोग्गलस्स कति इंदियाणि ? ताधे वायगो चितेति-जो लोगचरिमंताओ लोगचरिमंतं एगसमएणं गच्छति अवस्स सो पंचिंदियो त्ति / भणति-पंच इंदियाणि / तेण गंतुं कधितं तेसिं अण्णउत्थियाणं / ताधे तेहिं आगंतुं णीसटुं बहुजणमज्झे चमढितो / एवं तित्थोभावणा भवति। तत्थ णवधम्माणं विकप्पो उप्पज्जति–जति वायओ तेसिं सव्वबहुस्सुओ वि ण सक्केति उत्तरं पयच्छिउं, नूणं एतेसिं तित्थगरेण चेव ण णातं / एवं मिच्छत्तं भवति / संजमस्स जोगस्स य कधं विराधणा भवति? / उच्यते जीवा-ऽजीवे ण मुणइ, अलियभया साहए दग-मिताई। करणे अविवच्चासं, करेइ आगाढऽणागाढे // 721 // तुरियं णाहिज्जंते, णेव चिरंजोगजंतिता होति / लद्धो महंतसद्दो त्ति केइ पासाइँ गेहंति // 722 // कमजोगं ण वि जाणइ, विगईओ का य कत्थ जोगम्मि / अण्णस्स वि दिति तहा, परंपरा घंटदिटुंतो // 723 // 1-2. पुव्वं पू० 2 / 3. जे पू० 2 विना / 4. गच्छंति पू० 2 विना /
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