Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 202
________________ भाष्यगाथा-७१०-७१८] 181 "दुविहो अ०" गाधा / सो सत्तमतो छेदो दुविधो भवति / तं जधा-देसछेदो य सव्वछेदो य / देसं परियागस्स छिंदतीति देसच्छेदो, पणगादी जाव छम्मासा, एस देसछेदो। सव्वच्छेदो जति वि देसूणा पुव्वकोडी परियागस्स तं सव्वं एगसराए च्चेव छिंदति / सो पुण मूलाणवठ्ठपारंचिया तिण्णि वि एक्को च्चेव सव्वछेदो भवति / एतेण कारणेणं सत्तविधं पच्छित्तं / अट्ठविधं कधं भवति ? छेदो सत्तमओ, अट्ठमयं मूलं / छिज्जंते वि ण पावेज्ज कोइ मूलं अओ भवे अट्ठ। चिरघाई वा छेदो, मूलं पुण सज्जघाई उ // 714 // "छिज्जंते०" गाधा / देसछेदेणं जाधे छिज्जंते वि परियाए चिरपव्वाइत्तणेणं मूलं ण चेव पावति, ताधे मूलं से दिज्जति अट्ठमयं / आह, तो वि विसेसो णत्थि / 'सव्वछेदे चेव मूलं पडति / उच्यते-देसच्छेदो चिरेणं छिंदति, इतरो खिप्पं छिंदति, एस विसेसो / णवविधं कधं ? एतं च अट्ठविधं, णवमं अणवठ्ठारिहं / वूढे पायच्छित्ते, ठविज्जई जेण तेण णव होति / जं वसइ खित्तबाहिं, चरिमं तम्हा दस हवंति // 715 // "वूढे०" पुव्वद्धं / कुन्न स्थाप्यते ? व्रतेषु / एवं णवविधं / दसविधं कधं ? एय हेट्ठिल्ला णव, दसमं पारंचियं / एत्थ गाहार्द्धं "जं वसति०" / कंठं / चरिमं णाम सर्वप्रायश्चित्तानामन्ते वर्तत इति चरिमं भवति / एयं दुवालसविहं, जिणोवइट्रं जहोवएसेणं / जो जाणिऊण कप्पं, सद्दहणाऽऽयरणयं कुणइ // 716 // ... “एयं दुवालस०" गाधा / दुवालसविधं णाम दुवालस एते दारा सुत्ते अत्थे तदुभय जाव विहारकप्पे य त्ति / ज्ञात्वा किं करोति ? उच्यते-जति सद्दहति ‘एवमेयं, नान्यथावादिनो जिनाः', सद्दहित्ता जति आयरति / किं भवति ? उच्यते सो भविय सुलभबोही, परित्तसंसारिओ पयणुकम्मो / अचिरेण उ कालेणं, गच्छइ सिद्धि धुयकिलेसो // 717 // "सो भविय०" गाधा / कंठा / कप्पिओ त्ति दारं, दुवालसविधं गतं भवति / चोयग पुच्छा उस्सारकप्पिओ णत्थि तस्स किह णामं / उस्सारे चउगुरुगा, तत्थ वि आणाइणो दोसा // 718 // "चोयग पुच्छा०" गाधा / एतस्मिन् द्वादशप्रकारे कल्पिकद्वारे अपदिष्टे अवसर 1. सव्वछेदेण मूलं पू० 2 / 2. णवमं से अ० पा० /

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