Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ 180 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका अण्णाणि सत्त मासलहुओ छेदो, तओ अण्णाणि सत्त मासगुरुओ छेदो, ततो अण्णाणि सत्त ह्व छेदो, ततो अण्णाणि सत्त ही छेदो, तओ अण्णाणि सत्त 6 छेदो। ततो अण्णाणि सत्त ही छेदो। जइ एत्तिएणं छिण्णो परियायो भवति, गतं चेव। एत्तो परं जति वि देसूणा पुव्वकोडी परियातो सेसा सव्वा 'एगतराए छिज्जति, एतं मूलं छेदेणं छिण्णपरियाए त्ति / एत्थ अकारलोपो द्रष्टव्यः / यदुक्तं भवति-छेदेन यदा न छिद्यते पर्यायस्तदा मूलं भवति / दुगं नाम ततो परं एगदिवसं अणवठप्पो, बितितदिवसं पारंचिओ / एत्थ च तुल्ला चेव उठाणा, तव-छेयाणं हवंति दोण्हं पि। पणगाइ पणगवुड्डी, दोण्ह वि छम्मास णिट्ठवणा // 710 // "तुल्ला चेव०" गाधा / तव–छेदाणं तुल्ला चेव ठाणा भवंति / जत्तिया तवाणं ठाणा तत्तिया छताणं वि / ततो पंचरातिदिओ लहुओ, तओ गुरुओ, तओ दसरातिदिओ लहुओ, . ततो गुरुगो / एवं च पंच पंच विलइंतो जाव मासिओ तवो लहुओ / ततो गुरुओ / ततो ह्व। ततो 4 // ततो 6 / ततो 6 / / छेदो वि एतेहिं चेव ठाणेहि- . पढिय सुय गुणिय धारिय, करणे उवउत्तो छहिं वि ठाणेहिं / छट्ठाणसंपउत्तो, गणपरियट्टी अणुण्णाओ // 711 // "पढिय सुय०" गाधा / पढितं णा(णे?)॥२, पढित्ता अत्थो सुतो, सुणेत्ता सव्वोऽणेणं३ सुगुणितो कतो। धरेति य तं सव्वं / तस्स य सुतस्स आणं करेति / उवउत्तो णाम ण पमादं करेति णिच्चोवउत्तो / कुत्र? उच्यते-छहिं ठाणेहि महव्वएहिं ति भणितं होति / एतेहिं पढितादीहिं छहिं ठाणेहिं संपउत्तो, समण्णागतो त्ति भणितं होति / सो गणपरियट्टी अणुण्णातो तित्थगरेहिं / सत्तऽट्ठ णवग दसगं, परिहरई जो विहारकप्पी सो। . तिविहं तीहिँ विसुद्धं, परिहर णवएण भेएण // 712 // "सत्त-टुणवग०" गाधा / अधवा सत्तविधं वा अट्ठविधं वा णवविधं वा दसविधं वा पच्छित्तं परिहरति जो। कधं ? उच्यते-तिविधं ति दाणपच्छित्तं, तवपच्छित्तं, कालपच्छित्तं / मणेण परिहरइ / णवगो भेदो पूर्ववत् / जोगे पडिसेवणाए तिविधं पच्छित्तं भवति, ताए परिहरिताए तिविधं पच्छित्तं परिहरितं चेव भवतीत्येषोऽर्थः / स्यान्मतिः, कधं सत्तविधं पच्छित्तं भवति ? उच्यते-१ आलोयणारिहं, 2 पडिक्कमणारिहं 3 तदुभयारिहं 4 विवेगारिहं 5 विउसग्गारिहं, 6 तवारिहं, 7 छेदारिहं, एयं सत्तविहं / आह, मूलाणवठ्ठचरिमा कहिं पविट्ठा ? / उच्यते दुविहो अ होइ छेदो, देसच्छेदो अ सव्वछेदो अ। मूला-ऽणवट्ठ-चरिमा, सव्वच्छेओ अतो सत्त // 713 // . 1. एगसा( स )रा चेव पा० / 2. पढियं तेणं प० पू० 1 / 3. सत्तोणेणं पू० 1 / /
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