Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad
View full book text ________________ भाष्यगाथा-६९३-७०२] 177 एगल्लओ विहरति तस्स मासलहू / अगीतत्थो जो एगागी विहरइ तस्स 4 // चवणकप्पेणं विहरति चउलहुगा / मनसा इत्यर्थः / च शब्दाद् यच्चापद्यते / 'भंगट्ठ'त्ति / एगविहारी अजातकप्पिओ चवणकप्पेणं विहरति / अण्णो एगविहारी अजातकप्पिओ वि णो चवणकप्पेण। एवं अट्ठ भंगा कातव्वा' / सव्वत्थ संजोगपच्छित्तं / चरिमो सुद्धो / एस सत्तविहो / उवसंपण्णो त्ति / एगागित्तमणट्ठा-उवसंपज्जइ चुओ व जो कप्पा / सो खलु सोच्चो मंदो, मंदो पुण दव्व-भावेणं // 699 // "एगागित्त०" गाधा / कल्पादिति संविग्नकल्पात् प्रच्युतः, शोचनीयः-शोच्यः मंदश्चासौ / मंदो दुविधो-दव्वमंदो भावमंदो य / एक्केको पुण उवचय-अवचय भावे उ अवचए पगयं / तलिना बुद्धी सेट्ठा, उभयमओ केइ इच्छन्ति // 700 // "एक्केको०" गाधा / दव्वमंदो दुविधो-उवचए अवचए य / भावमंदो वि दुविधो उवचए अवचए य / एत्थ पुण भावावचयमंदेणं पगतं / सेसा विगोवणनिमित्तं उच्चारियसरिस त्ति काउं परूविया / तत्थ दव्वमंदो उपचए जो थूलसरीरो, अवचए जो किससरीसो / उवचए भावमंदो जो बुद्धिमंतो / अवचए जो रेणिब्बुद्धी / अधवा 'तलिना' बुद्धिः, श्रेष्ठा इति कृत्वा, सा यस्य स एवोपचयमंदो भवति, यस्य स्थूला सो अवचयमंदो भवति / अतः उभयथाप्यपचयमंदं केचिदाचार्याः इच्छन्ति / वोसट्ठाणि तिण्णि ठाणाणि जेण सो वोसट्ठतिहाणो (गा० 697) / कयराणि पुनस्तानि त्रीणि स्थानानि यानि तेन व्युत्सृष्टानि ? उच्यते- . णाणादी तिट्ठाणा, अहवण चरणऽप्पओ पवयणं च / सुत्तऽत्थ-तदुभयाणि व, उग्गम उप्पायणाओ वा // 701 // "णाणादी०" गाधा / कंठा / वा शब्दादेषणा य / कथं पुनरसौ ज्ञानं व्युत्सृजते ? उच्यते-एगागिस्स / अप्पुव्वस्स अगहणं, ण य संकिय पुच्छणा ण सारणया / गुणयंते अ अटुं, सीदइ एगस्स उच्छाहो // 702 // 1. अष्टौ भंगा:-१. एकाकी अजातकल्पिक श्च्यवनकल्पिकः 2. एकाकी अजातकल्पिको न च्यवनकल्पिक: 3. एकाकी जातकल्पिकश्च्यवनकल्पिकः 4. एकाकी जातकल्पिको न च्यवनकल्पिकः / एकमेकाकिपदेन चत्वारो भगा लब्धाः, अनेकाकिपदेनापि चत्वारो भंगा लभ्यन्ते / सर्वसंख्यया अष्टौ भंगाः / (बृ०वृ०१ पृ० 209) / 2. विकोवण० पू० 2 / 3. अबुद्धी पा० / 4. तालिका पू० 2 /
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