Book Title: Bruhatkalp Sutram Pithika Part 01
Author(s): Sheelchandrasuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 171
________________ 150 बृहत्कल्पचूर्णिः // [पीठिका दुविहकरणोवघाया, संसत्ता पच्चवाय सिज्जविही / जो जाणति परिहरिउं, सो गहणे कप्पितो होति // 583 // "दुविहकरण०" गाधा / 'दुविधकरणोवघात' त्ति, दुविधं करणं वसधीए / मूलकरणं च उत्तरकरणं च / एतेण दुविधेण करणेणं उवहता वसधी भवति / 'अकप्पिय'त्ति भणितं होति / सत्तेव य मूलगुणे, सोही सत्तेव उत्तरगुणेसु / संसत्तम्मि य छक्कं, लहु-गुरु-लहुगा चरम जाव // 584 // "सत्तेव य०" पुव्वद्धं / मूलगुणकरणं सत्तविधं, सोहेतव्वं साहुणा वसहीए / उत्तरगुणकरणं पि सत्तविधं / / पट्टीवंसो दो धारणाउ चत्तारि मूलवेलीतो। मूलगुणेहिँ उवहया, जा सा आहाकडा वसही // 585 // "पट्टीवंसो०" गाधा / एते मूलगुणा / एतेहिं उवहता वसधी आधाकम्मा भवति / साधुमाधाय एभिः कृतरित्यर्थः / उत्तरगुणकरणं सत्तविहं वंसग कडणोक्कंचण, छावण लेवण दुवार भूमी य / सप्परिकम्मा वसही, एसा मूलोत्तरगुणेसु // 586 // / "वंसग०" गाधा / वंसग त्ति जं ओडंडइज्जति, कडणं कडगादीहिं पासाणि छातिज्जंति, उक्वंचणं' ओलवणे 'छावणं' दब्भादीहिं छयणं, 'लेवणं' चिक्खल्लेणं लिंपणं कुड्डाणं कज्जए संजतट्ठाए, अण्णओ दुवारकरणं संजतट्ठाए भूमिकम्मकरणं / एते उत्तरगुणा वसधीए / 'मूल'त्ति, अविसोधिकोडी / पुण अण्णे वि इमे उत्तरगुणा वसहीए / विसोहिकोडी पुण दूमिय धूविय वासिय, उज्जोविय बलिकडा अवत्ता य। सित्ता सम्मट्ठा वि य, विसोहिकोडी कया वसही // 587 // "दूमित" गाधा / दूमितं नाम सुकुमालियालेवेणं सुकुमालीकतं कुटुं उल्लातितं वा / धूवितं ३अगुलुमादीहि धूविता वसही / वासिता पडवासकुसुमादीहिं / उज्जोविता अगणिकाएणं अंधकारे उज्जोतो कतो / बलिकडा नाम संजतढाए बली कडा / अवत्ता णाम उवलित्ता भूमी / सित्ता संजतट्ठाए आवरिसीकरणं / सम्मट्ठा णाम वोहारिया संजतट्ठाए वसही। 1. ओकंपणं पू० 2 पा० / ओकंचणं पू० 1 / 2. ओचलणं पा० / 3. गुगलु० पा० / 4. अव्वत्ता पू० 1, पा० /

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