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मेरुपर्वत प्रदक्षिणा देतो छतो (परिभमंति) के फरे छे. एटले जंबुद्वीपमां ज्यारे एक सूर्य मेरुपर्वतथी दक्षिण दिशाए फरतो होय त्यारे बीजो सूर्य उत्तर दिशाए फरतो होय छे, तेवीज रीते लवण समुद्रमां एक एक दिशाए बचे सूर्य, धातकी खंडमां एक एक दिशाए छ छ सूर्य, कालोदधियां एक एक दिशाए एकवीश एकवीश सूर्य, अने पुष्करार्द्धमां एक एक दिशाए छत्रीश छत्रीश सूर्य. एम सर्व मली, छासठ सूर्य दक्षिण दिशाए अने छासठ सूर्य उत्तर दिशाए ए वे समश्रेणिना सर्व मली एकसो वत्रीश सूर्य अने तेवीज रीते एकसो वत्रीश चंद्र मनुष्यक्षेत्रमां फरे छे. ॥ ९९ ॥
हवे मनुष्यक्षेत्रमां ग्रहनी पंक्ति कहे छे.
एवं गहाइणोवि हु, नवरं धुवपोसवत्तिगो तारा ॥ तं चिय पयाहिगंता, तत्थेव सया परिभमंति ॥१००॥
अर्थ - ( एवं ) के० ए पूर्व कहेली चंद्र सूर्यनी पंक्तिनी पेठे ( गहाइणोवि हु ) के० ग्रह तथा नक्षत्रनी पंक्तिओ पण जाणवी. ते आ प्रमाणे एक एक चंद्रनी पाछल अठावीश नक्षत्रनी एक पंक्ति एवी छासठ छाउनी वे पंक्ति मली एक सो वत्रीश पंक्ति चंद्रनी पाछल जाणवी. तेमज अठाशी ग्रहनी एक पंक्ति, एवी छासठ छाउनी वे पंक्ति जाणवी. तेमां (नवरं ) के० एटलं विशेष छे के ( धुवपासवत्तिणो तारा ) के० ध्रुवना तारानी पासे रहेला ताराओ ( तंचिय पया हिता) के० प्रवना तारानेज प्रदक्षिणा करता (तत्व) के० त्यांज (सया ) के० निरंतर ( परिभमंति ) के० भ्रमण करे छे. ॥ १०० ॥
बत्तीससयं चंदा, बत्तीससयं च सूरिया सययं ॥ समसेणीए सव्वे, माणुसखित्ते परिभमंति ।। १०१ ।। १०४