Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 252
________________ २४७ संखपगिदिय तिरिया, मरिउं चउसुवि गईसु जंति ॥४४४॥ थावर विगला नियमा, संखाउयतिरिनरेसु गच्छंति ॥ विगला लभिज्ज विरई,सम्मंपि न तेउवाउचुया॥४४५।। अर्थ-(संखपणिदियतिरिया ) के० संख्याता आयुष्यवाला पंचेंद्रिय तिर्यंच जीवो (मरिउं) के० मरण पामीने (चउसुवि गइसु ) के चारे गतिमां (जंति ) जाय छे. ॥ ४४४ ॥ वली ( थावर ) के. एकेंद्री जीवो अने (विगला ) के० विकलेंद्री जीवो (नियमा ) के निश्चथी (संखाउयतिरिनरेसु) के० संख्याता आयुष्याला तिर्यच अने मनुष्यने विषे (गच्छंति ) के० जाय छे. (विगला) के०. विकलेंद्री जीवो मरण पामी मनुष्य गतिने पामे तेम (लभिज्ज विरई ) के० सर्व सावधविरतिरुप चारित्र पामे, पग मोक्ष पामे नहीं. वली (तेउवाउचुया ) के० तेउकाय अने वाउफायना जीवो मरण पामी मनुष्य तो न थाय, परंतु तिर्यंच भव पामे तो पण ( सम्मपि न ) के समकीत पामे नहीं ॥ ४४५ ॥ . ... __हवे तिर्यंचने तथा मनुष्यने लेश्या कहे छे. पुढवि दग परित्तवणा, बायरपज्जत हुँति चउलेसा ॥ गब्भयतिरियनराणं, छल्लेस्सा तिनि सेसाणं ॥४४६॥3 अर्थ-(वायरपज्जत्त) के० बादर अने पर्याप्ता एवा (पुढविदगपरित्तवणा ) के० पृथ्वीकाय अकाय अने प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवाने ( चउलेसा) के० कृष्ण नील कापोत अने तेजो ए चार लेश्या (हुति ) के० होय छे. तथा (गन्मयनिरियनराणं) के० गर्भज तिर्यच अने मनुष्यने (छल्लसा) के० छलेश्या

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