Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master
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(आणपाण) के. श्वासोश्वासपर्याप्ति, (भोस ) के भापापर्याप्ति, (मणे) के० मनपर्याप्ति. तेमां (इग) के० एकेंद्रियजीवोने (चउ) के० चार, (विगल) के० विकलेंद्रियजीवोने (पंच) के० पांच, (असन्नि) के० असंज्ञी पंचेंद्रियने (पंच) के० पांच, अने (सन्नीणं) के० संज्ञी पंचेंद्रियने ( छपिय) के० छ पर्याति होय छे. ॥४७८॥ आहारसरीरिदिअ, ऊसासवओ मणोभि निबत्ति ॥ होइजओ दलियाओ,करगं पइ सा उ पज्जत्ती ॥४७९॥
अर्थ-(आहार ) के० आहारपर्याप्ति, ( सरीर) के० शरीरपर्याप्ति, (इंदिअ) के० इंद्रियार्याप्ति, (पइ) के० प्रत्ये (ऊसास) के० श्वासोश्वासपर्याप्ति, (वओ ) के० वचनपर्याप्ति, अने (मगो) के० मनपर्याप्ति, ए छ पर्याप्तिनी ( अभिनिव्वत्ति ) के० उत्पत्ति (जओ दलिआओं ) के० जे पुद्गल दलथकी आहारादिकनी उत्पतिप्रत्ये (करण) के. जीव सम्बन्धी शक्तिविशेष ( होइ ) के० थाय ने (पज्जत्ती) के० पर्याप्ति कहेवाय छे. ॥ ४७ ॥
हवे जीवने दश प्राण होय ते कहे छे. पण इंदिय तिबलूसा,साऊ दस पाण चउ छ सग अट्ठ॥ इगदुतिचउरिंदीणं, असन्निसन्नीण नव दस य ॥४८०॥
अर्थ-स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु अने श्रोत्र ए (पण इंदिय) के० पांच इंद्रिय, मनोबल वचनवल अने कायवलरूप (तिबल) के० त्रण बल, (ऊसास) के० श्वासोश्वास, अने (आऊ) के० आयुष्य ए ( दस पाण ) के० दश प्राण जाणवा. तेमां ( इग) के एकद्रियने ( चउ ) के० चार, ( दुतिचउरिदिणं ) के० बेंद्री तेंद्री अने चरिंद्रीने अनुक्रमे ( छ सग अट्ठ) के० छ सात अने आठ प्राण होय छे. (य) के० तथा ( असन्निसन्नीण ) के० असंज्ञी पंचेंद्रीय

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