Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 268
________________ २६३ अर्थ-संजलननी, प्रत्याख्याननी, अप्रत्याख्याननी अने अनंतानुबंधी एम चार प्रकारनी ( मायो ) के० माया ते अनुक्रमे ( अवलेहि ) के० वांसनी छाल सरखी, (गोमुत्ती ) के० गोमुत्रसरखी, ( मिसिंग ) के० मेंढाना शिंगडा सरखी, अने (घणवंसमूलसमा) के० कठीन बांसना मूल सरखी छे. तेमज संजलननो, प्रत्याख्याननो, अप्रत्याख्याननो अने अनंतानुबंधीनो (लोहो) के० लोभ ते ( हलिद्द ) के० हलदरना रंग सरखो, (खंजण) के० सरावलोना मेल सरखो, ( कद्दम ) के० . कादवना पास सरखो, अने ( किमिरागसारिच्छो ) के० करमजीना रंग सरखो होय छे. ॥ ४७६ ) पक्वं चउमास संवच्छर-जावजीवाणु भवे कमसो॥ देव नरतिरिय नारय-गइ साहणहेउआ भणीया ॥४७७॥ ___अर्थ-ते संजलनादिक कषाय ( कमसो) के० अनुक्रमे ( पक्वं ) के० पंदर दिवस, (चउमास) के० चारमास, (संवच्छर) के० एक वर्ष अने (जावजीवाणु ) के० यावत् जीवित सुधी ( भवे ) के० होय, वली ते संजलनादिक कषाय अनुक्रमे (देषनरतिरियनारयगइ ) के० देवता, मनुष्य, तिर्यच अने नारकीनी गतिना ( साहणहेउआ) के० भेलवबाना कारण (भणिया) के० कयां छे. ॥ ४७७ ॥ हो सर्व जीवने पर्याप्ति कहे छे. आहारसरीरिंदिय, पज्जत्ती आगपाण भास मणे ॥ चउपंचपंचछप्पिय, इग विगलासन्निसन्नीणं ॥ ४७८ ॥ ___ अर्थ-पुद्गल परिणमन हेतु जे आत्मशक्तिविशेष ते पर्याप्ति कहेवाय. पर्याप्ति छ प्रकारे छे. (आहार) के० आहारपर्याप्ति, ( सरीर) के० शरीरपर्याप्ति, (इंदिय पज्जती) के० इंद्रियपर्याति,

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