Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 253
________________ २४८ हाय छे. तथा ( सेसाणं ) के बाकीना संजीवोने ( तिनि )के० त्रण लेश्या होय छे. ॥ ४४६ ॥ अंतमुहत्तंमि गए, अंतमुहत्तंभि सेसए चेव ॥ लेसोहि परिणयाहिं, जीवा वचंति परलोयं ॥४४७।। ___ अर्थ-(जोवा ) के० मनुष्य तथा तिर्यंच ( लेसाहि परिणयाहिं ) के० परभवनो लेश्या आव्या पछो ( अंतमुहुत्तमि गए ) के• एक अंतर्मुहुर्त गये थके मरण पामे छे अने देवता तथा नारकी (अंतमुहुत्तंमि सेसए चेच ) के० एक अतर्मुहूर्त पोतानी लेश्या बाकी रही होय त्यारेज (परलोयं वच्चति ) के० मरण पामे छे. ॥ ४४७ ॥ तेज वात आगली गाथाथी कहे छेतिरिनर आगामिभवे, लेस्सोए अइगए सुरानिरया ॥ पुव्वभव लेस्ससेसे, अंतमुहुत्ते मरणमिति ॥ ४४८ ॥ . अर्थ-( तिरिनर ) के० तिर्यंच तथा मनुष्य ते ( आगामि भवे ) के० आवता भवनी ( लेस्साए अइगए ) के० लेश्या आव्याने अंतर्मुहूर्त गया पछी मरण पामे छे. तथा ( सुरानिरया ) के० देवता अने नारको ते ( पुचभव ले ससेसे अंतमुहुत्ते ) के. पोताना पूर्वना एटले चालता भवनी लेश्या एक अंतर्मुहूर्त बाकी होय त्यारेज ( मरणमिति) के० मरण पामे छे. एटले तेजो लेश्यावाला देवता पृथ्वी अप अने प्रत्येकवनस्पतिकायमां आव्याने अंतमुहर्त थाय त्यांसुधी तेमने तेजो लेश्या होय छे. आ कारणथी पृथ्वी अप अने प्रत्येक वनस्पतिकायने चार लेश्या कहीछे. ॥४४८॥

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