Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 261
________________ २५६ मनुष्य ए छपने ( तिहा ) के० शीत, उष्ण अने शीतोष्ण योनी होय . ॥ ४६१ ॥ हवे एकला मनुष्यनी योनीना भेद कहे छे. . हयगन्भ संखवत्ता, जोणी कुम्मुन्नयाइ जायंति || अरिहहरि चक्करामा, वंसी पत्ताइ सेस नरा ||४६२|| 39 अर्थ – मनुष्यनी योनी त्रण प्रकारे हे एक शंखावर्ती, बीजी कुर्मोन्नता, त्रीजी वंशीपत्रा तेमां ( संखवत्ता) के० शंखावर्त्ता ( जोणी ) के० योनी ( हयगव्भ ) के० हतगर्भा होय छे. कारण एमां उपजेलो गर्भ अत्यंत अग्नितापथी मरण पाने छे. तेवी योनी चक्रवर्तीनी खीने होय छे. बीजी ( कुम्मुन्नयाइ ) के० कुर्मोनता ते काचवानी पीठ सरखी उंची होय. ते मांहे अरिहहरि चाकरामा के० अरिहंत, वासुदेव, चक्रवर्ती अने बलदेव ( जायंति) के० उत्पन्न थाय छे. त्रोत्री (वंसीपत्ताई ) के० सीपत्रा ते बांसना पत्राकार योनी होय तेमां ( सेसनरा ) के० बाकीना सर्व मनुष्यनो जन्म थाय छे. ॥। ४६२ ॥ वे आयुष्यबंध संबंधी कांइ विशेष कहे छे. आउस्स बंधकालो, अवाहकालो य अंतसमओ य ॥ अपवत्तण णपवत्तण, उवकम णुवकमा भणिया ।। ४६३ ॥ अर्थ — चालता भवनुं आयुष्य पूर्ण थवाना पहेला परभवनुं आयुष्य बांधे ते ( आउस्स) के० आयुष्यनो ( बंधकालो ) के० बंधकाल कहेवाय १, आयुष्य बांध्या पछी जेटलो काल गये थके आयुष्य उदय आवे तेना वचमानो जे काल ते ( अवाहकालो ) के० अवावाकाल कहवाय २, भोगवातुं आयुष्य जे समये पूर्ण थाय

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