Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

View full book text
Previous | Next

Page 263
________________ २५८ एकेंद्री, बद्री, तेंद्री, चौरेंद्री अने पंचेंद्री जीवो (सेसतिभागे) के० पोताना. भोगवाता आयुष्यनो त्रीजो भाग बाकी होय त्यारे, ( अहव ) के० अथवा (नवमभागे)के० नवमो भाग बाकी होय त्यारे, अथवा ( सत्तावीसइमे वा ) के सत्तावीसमो भाग बाको होय त्यारे, अथवा ( अंतमुहुत्तंतिमेवावि )के छल्ले अंतर्मुहूर्त आयुष्य बाको होय त्यारे परभवनुं आयुष्य बांधे छे. ।। ४६५ ॥ ए बंधकालनुं प्रथमद्वार का. हवे अबाधाकालादिकना वीजा द्वारो कहे छे. जइमे भागे बंधो, आउस्स भवे अबाहकोलोसो ॥ ३२ अंते उज्जुगइ इग-समय वक्क चउपंच समयंता ॥४६६॥ ___ अर्थ-( जइमे भागे ) के जे जीव पूर्व कहेला जे भागे ( आउस्स बंधो ) के. परभवनां आयुष्यनो बंध करे (सो अबाहकालो) के० ते अबाधाकाल एटले आयुष्यनो बंध कर्या पछी परभवना आयुष्यनी उदय पहेलांनो अर्थात् वच्चेनो समय ते अबाधाकाल ( भवे ) के० होय छे. वली ( अंते ) के० अंतसमये जीवने परभवे जातां बे गति होय छे. एक ऋजुगति, बीजी वक्रगति. तेमां जे.( उज्जुगइ ) के० ऋजुगात छे ते ( इगसमय ) के० एक समय प्रमाण होय छे अने ( वक्त ) के० वक्रगति छे ते ( चउपंच समयंता) के० चार पांच समयनी होय छे. ॥ ४६६ ॥ उज्जुगइ पढासमए, परभवियं आउयं तहाहारो॥ वक्काइ बीयसमए, परभवियाउं उदयमेई ॥ ४६७ ॥ ५. अर्थ-( उज्जुगइ) के० ऋजुगतिये ( पढमसमए ) के० पहेला समयने विषे (परभवियं आउयं ) के० परभवतुं आयुष्य उदय

Loading...

Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272