Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 255
________________ २५० अर्थ-(देवा ) के० देवता तथा ( असंख नरतिरि ) के० असंख्याता आयुष्यवाला युगलिया मनुष्य अने तिर्यंच ए जीवोमां ( इत्थी पुंवेय ) के० स्त्रीवेद अने पुरुषवेद एवा देद होय छे. चलो ( संखाउया ) के० संख्याता आयुष्यवाला (गब्भनरतिरिया ) के० गर्भज मनुष्य अने गर्भज तिर्यच ते जीवोमां (तिबेया) के० पुरुष स्त्री तथा नपुंसक एवा त्रण वेद होय छे. अने (नारगाईया ) के० नारकी आदि एटले नारकी, एकंद्री, बेंद्री, तेंद्री चउरेंद्री, संमुश्छिम मनुष्य तथा संमुछिम तिर्यच ए जीवो ( नपुंसगा ) के० एक नपुंसक वेदवाला जाणवा. ॥ ४५१ ॥ हो पूर्वे कहेला विमानादिक जे अंगुलप्रमाणथी मपाय ते कहेछे. आयंगुलेण वत्थु, सरीर मुस्सेह अंगुलेण तहा॥ नगपुढविविमाणाई, मिणसु पमाणंगुलेणं तु ॥ ४५२॥30 अर्थ-आंगुलनां त्रण भेद छे, आत्मांगुल, उत्सेद्धांगुल अने प्रमाणांगुल. तेमां ( आयंगुलेण) के० आत्मांगुले करी (वत्थु ) के० वास्तु जे घर कूवा तलाव विगेरे मपाय.. ( तहा) के० तथा ( उस्सेह अंगुलेण ) के० उत्सेद्धांगुले करीने ( सरीरं) के० देवता विगेरेनुं शरीर मपाय. (तु) के० वली (प्रमाणंगुलेणं ) के० प्रमाणांगुले करीने ( नगपुढविविमाणाई ) के० पर्वत, नरकपृथ्वी, अने देव विमान विगेरे मिणसु) के० मपाय छे. ॥ ४५२ ॥ जे काले जे प्राणीओ पोताना हाथना आंगुलथी माप करे ते आत्मांगुल कहेवाय छे. हवे उत्सेद्धांगुलनुं स्वरूप कहे छे. सत्थेण सुतिखेणवि, छित्तं मित्तुं च जंकिर न सका। तं परमाणुं सिद्धा, वयंति आइं पमाणाणं ॥ ४५३ ।।

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