Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 256
________________ __ अर्थ-(मुतिवखेणवि ) के० अत्यन्त तीक्ष्ण एवा (सत्थेण) के० शस्त्रेकरीने (जं) के. जे वस्तु ( किर ) के० निश्चे (छित्तुं भित्तुं न सका ) के० छेदी भेदी न शकाय. ( सिद्धा ) के० सिद्ध एटले केवलज्ञानी पुरुषो ( तं ) के० ते वस्तुने ( परमाणु वयंति ) के० परमाणु कहे छे. अने ते परमाणु ( पमाणाणं ) के० सर्व प्रमाणोनी मध्ये ( आई ) के० आदि प्रमाण छे. ॥ ४५३ ॥ परमाणू तसरेणू रहरेणू, वालअग्ग लिक्खा य॥ जूय जव अट्ठगुणो, कमेण उस्सेह अंगुलयं ॥४५॥ अंगुल छकं पाओ,सो दुगुण विहत्थि सा दुगुण हत्थो।। चउहत्थं धणुदुसहस्स,कोसो ते जोयणं चउरो॥४५५॥ ____अर्थ-(परमाणू ) के० आठ व्यवहार परमाणुए (तसरेणू) के० एक तसरेणु थाय. आठ तसरेणुए ( रहरेणु ) के एक स्थरेणु थाय. आठ रथरेणुए ( बालअग्ग ) के० एक बालाग्र थाय. आठ वालाग्रे ( लिक्खाय) के० एक लीख थाय. आठ लीखे ( जूय ) के० एक जू थाय. आठ जूये (जव) के० एक जव थाय. अने ( अठगुणो ) के. जवने आठगुणो करीये त्यारे ( कमेण ) के० अनुक्रमे करीने (उस्सेह अंगुलयं) के० एक उत्सेद्धांगुल थोय. ॥४६४ ॥ (अंगुलछकं ) के० तेवा छ उत्सेद्धांगुले ( पाओ) के० एक पग थाय. ( सो दुगुण) के० पगने बमणो करीये त्यारे ( विहत्थि ) के० एक वेंत थाय, ( सा दुगुण )के० बे ते (हत्थो) के० एक हाथ. (चउहत्थे ) के० चार हाथे (धणु) के० एक धनुष्य थाय, ( दुसहस्स) के० तेवा बे हजार धनुष्ये (कोसो) के० एक कोश थाय. (ते चउरो) के० ते चारकोशे (जोयणं) के० एक योजन थाय छे. ॥ ४५५ ॥

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