Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master
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एक समये एक सो आठ मोक्षे जाय. ॥ ४०८ ॥ अने ( सेसट्टभंगएमु ) के० बाकीना आठ भांगामां तो ( समएणं ) के एक समयमां ( दस दस सिझंति ) के० दश दश जीवो मोक्ष पामे छे. हवे पाछली बे पदे करीने सिद्ध गतिनो उपपात विरहकाल कहे छे. मोक्ष जवानो (गुरुओ) के० उत्कृष्टो ( विरहो ) के० रिहकाल (छमास ) के० छमहिनानो जाणवो. अने ( लहु ) के० जघन्य विरहकाल ( समओ ) के० एक समयनो जाणवो, परन्तु ( इह ) के० ए मोक्षथकी ( चवण) के० चवq ( नत्थि ) के० नथी तुं. अर्थात् मोक्षे गयेलाने फरी संसारमा आवq नथी. ॥ ४०९ ॥
अड सग छ पंच चउ, तिन्नि दुन्नि इकोय सिज्झमाणेसु॥ बत्तीसाइसुसमया, निरंतरं अंतरं उवरि ॥ ४१० ॥५८ बत्तीसा अडयोला, सट्ठी बावत्तरी य बोधव्वा ॥
चुलसीई छन्नवइ, दुरहिय महुत्तरसयं च ॥ ४११ ॥४ ___ अर्थ-(बत्तीसाइसु सिज्झमाणेसु के० बत्रीशने आदि दइने मोक्षे जतां जीवोने ( अड सग छ पंच चउ तिन्नि दुनि इकोय ) के० अनुक्रमे आठ सोत छ पांच चार त्रण बे अने एक ( समया) के० समय (निरंतरं )के० आंतरा विना मोक्षे जाय. एथी (उवरि) के० उपर ( अंतरं ) के० अंतरपडे. भावार्थ ए छे के-एक समये एक बेथी आरंभी बत्रीश सुधी माक्षे जाय तो आठ समय सुधी मोक्षे जाय, पछी अंतर पडे. ॥ ४१० ॥ ते बत्रीश विगेरेनी संख्या कहे छे. ( बत्तीसा ) के० बत्रीश, ( अटयाला ) के. अडतालीश, ( सही ) के० साठ, (बावत्तरी ) के वहोंतेर, (चुलसीइ ] के० चोरोशी, (छन्नवइ ) के० छन्नु, (दुरहिय) के एक सो बे अने

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