Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master
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२३७ चोराशी हजार वर्षनी, संस्टिम पक्षीनी बहोतेर हजार वर्षनी, संमूच्छिम , विगेरेन त्रेपन हजार वर्षनी, अने संमृच्छिम नोलोया विगेरेनी बेंताली हजार वर्षनी उत्कृष्टी आयु स्थिति होय छे. ॥ ४२३ ॥ ____ हवे ए जीवोनो कायस्थिति कहे छे. एसा पुढवाईणं, भवटिई संपयं तु कायठिई ॥ चउएगिदिसु णेया, उसप्पिणीओ असंखिज्जा ॥४२४॥3 ___ अर्थ-( पुढवाईणं ) के० पृथ्वीकायादिक जीवोनी (एसा) के० ए पूर्व कहेली आयुष्यरूप ( भवंछिइ ) के० भवस्थिति कही. (तु ) के० वली एज जीवोनी (संपयं ) के. हरणां (कायटिई) के फरी फरी मरण पामी तेजकायामां उपजे ते कायस्थिति कहे. छे. ( चउ एगिदिसु) के० वनस्पति विना बाकीना पृथ्वीकायादि चार एके दिनीवोनी उत्कृष्टी कायस्थिति (असंखिजा उसप्पिणीओ) के. असख्याता उत्सर्पिणी अवसर्पिगी कालनी ( णेया ) के० जाणवी. ॥ दश कोडा कोडी सागरोपमे एक उत्साणी अने दश कोडा कोडी सागरोयमे एक अवसर्पिणो थाय छे. ए कालमोन भरत तथा एरवतनी अपेक्षाथो जाणवू. ए काल प्रमाणथी कायस्थिति कही, क्षेत्रथी तो जेटला चउदराजना : आकाश · प्रदेश छे तेटली संख्याए असंख्याता लोक कलीने ते लोकना एक एक प्रदेशे समय समय काढतां असंख्याती उर्पिगी अने अवसर्पिणी थाय छे. ॥ ४२४ ॥ ता उ वर्णमि अणंता,संखिज्जा वाससहस्स विगलेसु ॥
ना पंचिंदितिरिनरेसु, सत्तट्ठ भवा उ उक्कोसा ॥ ४२५ ॥ :

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