Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 236
________________ २३१ ( अत्तरयं च ) के० एक सो आठ एम अनुक्रमे जाणवा. भा - वार्थ र छे के एकथी आरंभी वत्रीस जीवो सुधी समये समये मोक्षे जाय तो ओठ समय सुधी जाय. पछी एकादि समयनुं अंतर पडे. तेत्रीशथी आरंभी अडतालीस सुधी समये समये मोक्षे जाय तो सांत समय सुधी जाय. पछी अंतर पडे. ओगणपचासथी आरंभी साठ सुधी समये समये मोक्षे जाय तो छ समय सुधी जाय, पछी अंतर पडे. एकसठथी आरंभी बहोंतर सुधी समये समये मोक्षे जाय तो पांच समय सुधी जाय, पछी अंतर पडे. तहुतेरथी आरंभी चोरासी सुधी समये समये मोक्षे जाय तो चार समय सुधी पछी अंतर पडे पंचाशीथी आरंभी छन्नु सुधी समये सम मोक्षे जाय तो ऋण समय सुधी, पछी अंतर पडे. सत्ताget आरंभी एक सो वे सुधी समये समये मोक्षे जाय तो बे समय सुधी, अने एक सो त्रणथी आरंभी एक सो आठ सुधी मोक्षे जाय तो एक समये मोक्षे जाय. बीजे समये अंतर पडे. ॥ ४११ ॥ सिद्धक्षेत्र स्वरूप कहे छे. पणयाल लक्ख जोयण - विक्खंभा सिद्धिसिल फलिहविमला ॥ तदुवरिगजोयते, लोगंतो तत्थ सिद्धई || ४१२ ।। अर्थ — सर्वार्थसिद्ध विमानथ बार योजन उपर ( पणयाललक्ख जोयणविवखंभा ) के पीस्तालीश लाख योजन विस्तारवाली अने (फलिहविमला) के० स्फटिकरत्न समान निर्मल (सिद्धि सिल) के० सिद्धशीला छे. (तदुवरिगजायते ) के०ते सिद्धशीलाना उपर एक योजनने अंते (लोगंतो ) के० लोकांत छे. (तत्थ ) के० त्यां (सिद्धटिइ ) कं० सिद्धनो निवास . ॥ ४९२ ॥

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