Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master
View full book text
________________
२२२ अर्थ-(य) के वली (एगिदियरयणाई ) के० सात एकेद्रिय रत्नो ते ( असुरकुमारेहिं जावईसाणे ) के० असुरकुमारथा आरंभी ईशान देवलोकना देवता सुधीना जीवो (नियमा ) के० निश्चेथी ( उववज्जति ) के० उपजे छे. ( सेसट्टाणेसु पडिसेहो ) के० वाकीना जीवो न उपजे. ॥ ३९१॥
हवे चौद रत्नानां नाम तथा प्रमाण बे गाथाथी कहे छे. वामपमाणं चकं, छत्तं दंडं दुहत्थयं चम्मं ॥ बत्तीसंगुलखग्गा,सुवण्णुकागिणि चउरंगुलिया ॥३९२।। 2 चउरंगुला दुअंगुल-पिठुलो अमणिपुरोहियगयतुरया॥3 "सेणावइ गाहावइ, वही थी चकिरयणाई ॥ ३९३ ॥3
un " अर्थ-(चकं ) के० चक्ररत्न (छत्तं ) के० छत्ररत्न तथा (दंड ) के दंडरत्न ए त्रण ( वामपमाणं ) के एक वाम एटले बेहाथने लांबा करवाथी जे प्रमाण थाय तेवडां होय छे. (चम्म ) के० चर्मरत्न (दुहत्ययं ) के० वे हाथप्रमाण होय छे. (बत्तीसंगुलखग्गो ) के० खड्गरत्न बत्रीश अंगुल प्रमाण लांबु होय छे. ( सुवण्णकागिणि चउरंगुलिया) के० सुवर्णमय कागिणिरत्न चार अंगुल प्रमाण लांबु होय छे. ॥ ३९२ ॥ ( चउरंगुला) के० चार अंगुल लांबु अने (दुअंगुलपिहलो ) के० बे अंगुल पहोलु (मणि) के० मणिरत्न होय छे. ए सात एकंद्रिरत्नो चक्रवर्तीना अंगुलथी जाणवा. अने (पुराहिय गय तुरया ) के० पुरोहित, हस्ता अश्व, तथा ( सेणावइ गाहावइ बढी त्थी) के० सेनापति, गाथापति, वार्द्धकी अने स्त्री ए सात पंचेद्रिरत्न. सर्व मलो ( चकिरयणाई) के० चक्रवर्तीनां चौद रत्न होय छे. ॥ ३९३ ॥ .

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272