Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master
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२०१
अर्थ-त्रीजी नरक पृथ्वीने विवे ( सत्ताणुयं सयं च ) के एक सो सत्ताणु नरकावासार्नु मुव अने ( तित्तीस सयं ) के एक सो तेत्रीश नरकावासानी भूमि छे. चोथी नरकपृथ्वीने विवे ( सय च पणवीसं) के० एक मो पच्चीस नरकावासानु मुख अने ( स तु. त्तरि) के सित्योतेर नरकावासानी भूमि छे. पांचमो नरकवीने विषे ( अउगत्तरी) के० ओग़गोचर नरकावासानु मुख अने (सत्त त्तिसा) के० साडबोस नरकावासानी भूमि छे. छट्ठी नरकपृथ्वीने विषे (गुणतीसा) के० ओगणीस नरकावासानु मुख अने (तेरस) के० तेर नरकावासानी भूमि छे. ए (मुहूभूमिओ) के० मुख अने भूमि ब्रह्या. परंतु सातमी नरकने वि प्रतरो नथी माटे मुख अने भूमि न थी ॥ ३५२॥ सत्तहि पणसय पण-जवइ सहस्स लक्ख गुणतीसं ॥ रयणाए सेदिगया,चउयाल सया य तित्तीसा ॥३५३॥ ___ अर्थ-( रयणाए) के० रत्नप्रभा पृथ्वीमा ( लक्ख गुणतीसं ) के ओगणत्रीस लाख, ( पण नवइ सहस्स ) के० पंचाणु हजार, (पणसय ) के० पांच अने ( सत्तहिः) के. सडसठ एटला पुष्पावकीर्ण नरकावासा छे. तथा (सेढिगया) के० श्रेणिमां रहेला ( चउयालसया य तित्तीसा) के० चुमालीस सो अने तेत्रीस नरकावासा छे. सर्व मळा त्रीस लाख नरकावासा रत्नप्रभा पृथ्वीमां जाणवा. ॥ ३५३ ॥ सत्ताणवइ सहस्सो, चउवीसं लक्ख तिसय पंचहिया॥ बीयाए सेढिगया, छब्बीससया य पणनउया ॥३५४॥५
अर्थ-( बीयाए ) के० बीजी नरकपृथ्वीमां (चवीम

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