Book Title: Bruhat Sangrahani
Author(s): Chandrasuri
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 212
________________ २०७ ० जोयणसहस्सा) के अगीयार हजार, (पंचसया ) के० पांचसो अने (तेसीया ) के० त्यासी एटला योजन, तथा ( एगो जोयणतिभागो) के० एक योजनना त्रण भाग करीये तेत्रो एक भाग. एटलं ( पत्थडेतरं ) के० प्रतरे प्रतरे अन्तर ( चिय ) के० निश्चे जाणवुं ॥ ३६४ ॥ सत्ताणवई सयाई, बीयाए पत्थडेतरं होइ ॥ पणहत्तरि तिष्णि सया, बारस सहस्स तइयाए | | ३६५॥५ अर्थ - ( बीयाए ) के० बीजी नरकपृथ्वीने विषे अगीयार प्रतरना दश आंतरामां ( सत्ताणवई सयाई ) के० नत्र हजार अने सात सो योजननुं ( पत्थतरं होइ ) के० प्रतरे प्रतरे आंतरुं होय. ( तइयाए ) के० त्रीजी नरकपृथ्वीने विषे नव प्रतरना आठ आंत - राम ( बारस सहस्स ) के बार हजार, ( तिण्णिसयां) के० त्रण सो अने (पणहत्तरि ) के० पंचोतेर योजननुं प्रतरे प्रतरे अंतर होय. ॥ ३६५ ॥ छावसिय सोलस, सहस्स एंगो य दा विभागाइ ॥ अढाइ सयाई, पणवीस सहस्स धूमाए || ३६६ ॥ C अर्थ — चोथी नरकपृथ्वीना सात प्रतरना छ आंतरामां ( सोलस सहस्स ) के० सोल हजार ( छावट्टिस ) के० एक सो ने छास योजन (य) के० अने ( एगो दो विभागाइ ) के० एक योजना त्रण भाग करीये तेवा वे भाग एटलं प्रतरे प्रतरे अंतर होय. पांचमी ( धूमाए ) के० धूमप्रभा नरकपृथ्वीने विषे पांच प्रतरना चार आंतरामां (पणवीस सहस्स) के० पच्चीस हजार अने ( अढाइ सयाई ) के० अढीसो अर्थात् वसो पचास योजननुं प्रतरे प्रतरे अंतर छे. ॥ ३६६ ॥

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