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म्रक्षित
१६३
एषणासमिति
५. संहृत-देय पात्र से सचित्त निकालकर देना ।
• संस्निग्ध-ईषत् आर्द्र हाथ । ६. दायक-अविधि से देने वाला अंधा, पंगू व्यक्ति । ० उदकाई-गीले हाथ । ७. उन्मिश्र-सचित्त और अचित्त का मिश्रण ।
३. वनस्पतिकाय - वनस्पति के प्रचर रस तथा प्रत्येक ८. अपरिणत ..- जो पूर्ण प्रासुक न हो।
और साधारण वनस्पति के श्लक्ष्णखंडों से लिप्त ९. लिप्त -खरड़ा हुआ, दही आदि से लिप्त पात्र हाथ। आदि से देना।
एवं उदओल्ले ससिणिद्धे, ससरक्खे मट्टिया ऊसे । १०. छदित ---अशन आदि को भूमि पर गिराते हए
हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे ।। देना ।
गेरुय वण्णिय सेडिय, सोरट्रिय पिटु कुक्कुसकए य। १. शंकित
उक्कट्ठमसंसठे, संसठे चेव बोधव्वे ॥ जं भवे भत्तपाणं तु, कप्पाकप्पम्मि संकियं ।
असंसद्रुण हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा । देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥
दिज्जमाणं न इच्छेज्जा, पच्छाकम्मं जहिं भवे ।। (द ५११४४)
(द ५।१।३३-३५) जो भक्तपान कल्प और अकल्प की दृष्टि से शंका- जल से आर्द्र, सस्निग्ध, सचित्त रजकण, मृत्तिका, युक्त हो, उसे देती हुई स्त्री को मुनि प्रतिषेध करे -इस क्षार, हरिताल, हिंगुल, मैनशिल, अञ्जन, नमक, गैरिक, प्रकार का आहार मैं नहीं ले सकता ।
वणिका, श्वेतिका, सौराष्ट्रिका, तत्काल पीसे हुए आटे
या कच्चे चावलों के आटे, अनाज के भूसे या छिलके २. म्रक्षित
और फल के सूक्ष्म खण्ड से सने हुए (हाथ, कड़छी और दुविहं च मक्खियं खलु सच्चित्तं चेव होइ अच्चित्तं ।
बर्तन से भिक्षा देती हुई स्त्री) को मूनि प्रतिषेध करेसच्चित्तं पुणं तिविहं अच्चित्तं होइ दुविहं तु ।।
इस प्रकार का आहार में नहीं ले सकता। जहां पश्चात् (पिनि ५३१)
कर्म का प्रसंग हो, वहां असंसष्ट (भक्तपान से अलिप्त) म्रक्षित के दो प्रकार हैं
हाथ, कड़छी और बर्तन से दिया जाने वाला आहार १. सचित्त म्रक्षित--सचित्त वस्तु से लिप्त हाथ
मुनि न ले। आदि ।
तहेव सत्तुचुण्णाई, कोलचुण्णाई आवणे । २. अचित्त म्रक्षित ---अचित्त वस्तु से लिप्त हाथ
सक्कुलिं फाणियं पूर्य, अन्नं वा वि तहाविहं ॥ आदि ।
विक्कायमाणं पसढं, रएण परिफासियं । पुढवी आउ वणस्सइ तिविहं सच्चित्तमक्खियं होइ।
देंतियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ अच्चित्तं पुण दुविहं गरहियमियरे य भयणा उ ।।
(द ५११७१,७२) सुक्केण सरक्खेणं मक्खिय मोल्लेण पूढविकाएण ।
सत्तु, बेर का चूर्ण, तिल-पपड़ी, गीला गुड़, पूआसव्वंपि मक्खियं तं एत्तो आउंमि वोच्छामि ।। पुरपच्छकम्म ससिणिद्धदउल्ले चउरो आउभेयाओ।
इस तरह की दूसरी वस्तुएं भी जो बेचने के लिए रखी
हों, परन्तु न बिकी हों, रज से स्पृष्ट हो गई हों तो मुनि उक्किट्ठरसालित्तं परित्तऽणतं महिरुहेसु ॥
(पिनि ५३२-५३४)
देती हुई स्त्री को प्रतिषेध करे-इस प्रकार की वस्तुएं सचित्त म्रक्षित के तीन प्रकार हैं
मैं नहीं ले सकता। १. पृथ्वीकाय -शुष्क या आर्द्र सचित्त रजों से लिप्त ।
संसद्रुण हत्थेण, दबीए भायणेण वा। २. अप्काय- इसके चार प्रकार हैं
दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा, जं तत्थेसणियं भवे ॥ • पुरःकर्म -आहार आदि देने से पूर्व साधु के
(द ५।११३६) निमित्त जल से हाथ आदि धोना ।
संसृष्ट (भक्त-पान से लिप्त) हाथ, कड़छी और • पश्चात् कर्म-साधु को देने के पश्चात् जल से बर्तन से दिया जाने वाला आहार, जो वहां एषणीय हो, - हाथ धोना।
मुनि ले ले।
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