Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 696
________________ उत्कृष्ट अनंत..... अहवा जहण्णयं जुत्ताणंतयं रूवणं उक्कोसयं परिताणतयं होइ ॥ जहण्णयं परित्ताणंतयं जहण्णपरित्ताणंतयमेत्ताणं रासी अण्णमण भासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्ताणंतयं होइ । अहवा उक्कोस परित्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्ताणंतयं होइ । अभवसिद्धिया वि तत्तिया चेव ।। ते परं अजहणमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं जुत्ताणंतयं न पावइ || जहष्ण एणं जुत्ताणंत एणं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णभासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्ताणंतयं होइ ॥ अहवा जहण्णयं अनंताणंतयं रूवणं उक्कोसयं जुत्तापंतयं होइ ॥ जहण जुत्ताणं एवं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णHoroभासो पsिyणो जहण्णयं अनंताणंतयं होइ । अहवा उक्कोसए जुत्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहणणयं अनंताणंतयं होइ || ते परं अजहण मणुक्कोसयाई ठाणाई || ( अनु ५९६-६०३) जघन्य परीत- अनन्त - जघन्य असंख्येय- असंख्येय राशि को जघन्य असंख्येय असंख्येय राशि से गुणित करने पर प्राप्त संख्या अथवा उत्कृष्ट असंख्येय - असंख्येय में एक मिलाने से जघन्य परीत-अनन्त होता है । अजघन्य - अनुत्कृष्ट परीत- अनन्त - जघन्य परीत- अनन्त से आगे उत्कृष्ट परीत- अनन्त से पूर्व बीच की सभी संख्यायें अजघन्य - अनुत्कृष्ट परीत-अनन्त होती हैं । उत्कृष्ट परीत- अनन्त - जघन्य परीत- अनन्त को जघन्य परीत - अनन्त से गुणित करने पर जो संख्या आती है, उससे एक कम उत्कृष्ट परीत- अनन्त होता है । अथवा एक कम जघन्य युक्त-अनन्त उत्कृष्ट परीतअनन्त होता है । जघन्य युक्त-अनन्त- जघन्य परीत-अनन्त को जघन्य परीत - अनन्त से गुणित करने पर जो संख्या आती है वह जघन्य युक्त - अनन्त होती है । अथवा उत्कृष्ट परीत - अनन्त में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य 'युक्त-अनन्त होता है । अभवसिद्धिक जीव भी उतने ही हैं । अजघन्य - अनुत्कष्ट युक्त-अनन्त - जघन्य युक्त-अनंत से Jain Education International • संख्या आगे उत्कृष्ट युक्त- अनंत से पूर्व बीच की सारी संख्याएं अजघन्य - अनुत्कृष्ट युक्त-अनन्त होती हैं । उत्कृष्ट युक्त अनन्त - जघन्य युक्त-अनन्त को अभवसिद्धिक जीवों की संख्या से गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्त-अनन्त को जघन्य युक्त-अनन्त से गुणित करने पर जो संख्या आती है उसमें एक कम करने से उत्कृष्ट युक्त - अनन्त होता है । अथवा एक कम जघन्य अनन्त-अनन्त उत्कृष्ट युक्त-अनन्त होता है । जघन्य अनन्त अनन्त -- जघन्य युक्त-अनन्त को अभवसिद्धिक जीवों की संख्या से गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्त-अनन्त को जघन्य युक्त-अनन्त से गुणित करने पर जो संख्या आती है वह जघन्य अनन्तअनन्त होती है । अथवा उत्कृष्ट युक्त-अनन्त में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य अनन्त अनन्त होता है । अजघन्य - अनुत्कृष्ट अनन्त अनन्त - जघन्य अनन्त - अनन्त से आगे सभी संख्याएं अजघन्य - अनुत्कृष्ट अनन्तअनन्त होती हैं । उत्कृष्ट अनन्त अनन्त यह विकल्प नहीं होता । ६५१ उत्कृष्ट अनंत अनंत एक विमर्श उक्कोसयमणंताणंतयं नास्त्येव इत्यर्थः । अन्ने य आयरिया भणति जहण्णगं अगंताणंतगं तिष्णि वारा afग्गयं ताधे इमे अणतपक्खेवा पक्खित्ता, तं जधा --- सिद्धा णियोयजीवा वणस्सती काल पोग्गला चेव । सव्वमलोगागासं छप्पेते गंत पवखेवा || - एते पक्खिविऊण तिणि वारा वग्गियसंवग्गितो तथावि उक्कोसयं अणंताणंतयं ण पावति, ततो केवलणाणं केवलदंसणं च पक्खित्तं, तहावि उक्कोसयं अनंताणंतयं ण पावति सुत्ताभिप्पायतो । अण्णायरियाभिप्पायतो केवलणाणदंसणेसु पक्खित्तेसु पत्तं उक्कोसमणंताणंतयं, जतो सव्वमत मित्थ अण्णं न किंचिदिति । जहि अनंताणंतयं मग्गिज्जति तहि अजहण्णमणुक्कोसयं अनंताणंतयं महेयव्वं । ( अनुचू पृ ८४, ८५) उत्कृष्ट अनन्त - अनन्त - इस भेद का अस्तित्व नहीं है । कुछ आचार्य इस भेद को स्वीकार करते हैं, जिसका गणित इस प्रकार है जघन्य अनन्त अनन्त का तीन बार वर्ग (अष्टघात ) करना चाहिये। किसी संख्या का तीन बार वर्ग करना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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