Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 694
________________ मध्यम असंख्यात - असंख्यात अन्तिम अनवस्थित पल्य बनाया जाता है । उसे भी शिखा सहित पूर्ण भरा जाता है । भरे हुए महाशलाका पल्य, प्रतिशलाका पल्य, शलाका पल्य और अनवस्थित पल्य के दानों को एकत्रित करके द्वीप और समुद्र में जितने दाने डाले गए थे उन दानों को उनमें मिलाया जाता है । उनकी जितनी संख्या होती है उससे एक कम संख्या उत्कृष्ट संख्यात की संख्या होती है । ४. असंख्येय के प्रकार असंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा परितासखेज्जए जुत्तासंखेज्जए असंखेज्जासंखेज्जए । परितासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । जुत्तासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- जहण्णए उक्कोसए अजहणमणुक्कोसए । -- असंखेज्जासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते, तं जहाजहणए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए । ( अनु ५७६-५७९ ) असंख्येय के तीन प्रकार हैं- परीत- असंख्येय, युक्तअसंख्येय और असंख्येय असंख्येय | इनमें से प्रत्येक के तीन-तीन भेद हैं जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्य - अनुत्कृष्ट । एवामेव उक्कोसए संखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं भवइ । ते पर अजहणमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्को - सयं परित्तासंखेज्जयं न पावइ ।। जहणयं परितासंखेज्जयं जहण्णयपरित्तासंखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णभासो रूवणो उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं होइ । अहवा जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं रूवणं उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं होइ ॥ जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं जहण्णयपरित्तासंखेज्जयमेत्ताणं' रासीणं अण्णमण्णभासो पडिपुण्णो जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं होइ | अहवा उक्कोसए परित्तासं वज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं होइ । आवलिया वि तत्तिया चेव ॥ ते परं अजहणमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं न पावइ ॥ जहणणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया Jain Education International संख्या अण्णमण्णभासो रूवूणो उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ । अहवा जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं होइ || ६४९ जहणणं जुत्तासंखेज्जएणं आवलिया गुणिया अण्णभासो पsिपुणो जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ । अहवा उक्कोस जुत्तासंखेज्जए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ । तेण परं अहमणुकोसाइं ठाणाई जाव उक्कोस असंखेज्जासंखेज्जयं न पावइ ॥ जहण्णयं असंखेज्जा संखेज्जयं जहण असंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णब्भासो रूवूणो उक्कोसयं असंखेज्जासं खेज्जयं होइ ॥ अहवा जहणयं परित्ताणंतयं रूवणं उक्कोसयं असंखेज्जासखेज्जयं होइ ॥ ( अनु ५८७-५९५ ) जघन्य परीत- असंख्येय उत्कृष्ट संख्येय में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य परीत-असंख्येय होता है । अजघन्य - अनुत्कृष्ट परीत- असंख्येय – जघन्य परीतअसंख्येय से आगे उत्कृष्ट परीत- असंख्येय से पूर्व बीच की सारी संख्याएं अजघन्य - अनुत्कृष्ट परीत-असंख्येय होती हैं । उत्कृष्ट परीत- असंख्येय - जघन्य परीत- असंख्येय को जघन्य परीत- असंख्येय से गुणित करने पर जो संख्या प्राप्त होती है, उससे एक कम उत्कृष्ट परीतअसंख्येय होता है । अथवा एक कम जघन्य युक्तअसंख्येय उत्कृष्ट परीत- असंख्येय होता है । जघन्य युक्त असंख्येय - जघन्य परीत- असंख्येय को जघन्य परीत - असंख्येय से गुणन करने पर जो संख्या प्राप्त होती है, वह जघन्य युक्त असंख्येध है । अथवा उत्कृष्ट परीत- असंख्येय में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य युक्त असंख्येय होता है । एक आवलिका की समय राशि भी उतनी ही होती है । अजघन्य- अनुत्कृष्ट युक्त असंख्येय - जघन्य युक्त-असंख्येय से आगे उत्कृष्ट युक्त असंख्येय से पूर्व बीच की सभी संख्याएं अजघन्य - अनुत्कृष्ट युक्त संख्येय होती हैं । उत्कृष्ट युक्त असंख्येय — जघन्य युक्त-असंख्येय को आवलिका से गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्तअसंख्येय को जघन्य युक्त असंख्येय से गुणित करने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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