Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 764
________________ ग्राम की मूर्छनाएं स्वरमंडल अजीवनिधित स्वर सात है मध्यम स्वर १. मृदङ्ग से षड्ज स्वर निकलता है। मध्यम स्वर वाले व्यक्ति सुख से जीते हैं, खाते-पीते २. गोमुखी (नरसिंघा नामक वाद्य) से ऋषभ स्वर हैं और दान करते हैं। निकलता है। पंचम स्वर ३. शंख से गान्धार स्वर निकलता है। पंचम स्वर वाले व्यक्ति राजा, शूर, संग्रहकर्ता और ४. झल्लरी से मध्यम स्वर निकलता है। अनेक गणों के नायक होते हैं। ५. चार चरणों पर प्रतिष्ठित गोधिका से पंचम धवत स्वर ___ स्वर निकलता है। धवत स्वर वाले व्यक्ति कष्टजीवी, पक्षियों, हिरणों ६. ढोल से धैवत स्वर निकलता है। और सूअरों को मारने वाले तथा घुसेबाज (मुष्टिमल्ल) ७. महाभेरी से निषाद स्वर निकलता है। होते हैं। ४. स्वरों के लक्षण निषाद स्वर सज्जेण लहइ वित्ति, कयं च न विणस्सइ । निषाद स्वर वाले व्यक्ति हिंसक, जंघाचार (तेज गावो पुत्ता य मित्ता य, नारीणं होई वल्लहो । गति से चलने वाले दूत), संदेशवाहक, घुमक्कड़ और रिसभेण उ एसज्ज, सेणावच्चं धणाणि य । भारवाही होते हैं। वत्थगंधमलंकार, इत्थीओ सयणाणि य ॥ ५. स्वरों के ग्राम गंधारे गीतजूत्तिण्णा, विज्जवित्ती कलाहिया। ___ सत्तण्हं सराणं तओ गामा पण्णत्ता, तं जहाहवंति कइणो पण्णा, जे अण्णे सत्थपारगा ।। सज्जगामे मज्झिमगामे गंधारगामे। (अनु ३०३) मज्झिमसरमंता उ, हवंति सुहजीविणो । खायई पियई देई, मज्झिमसरमस्सिओ ।। सात स्वरों के तीन ग्राम हैं-षड्ज ग्राम, मध्यम पंचमसरमंता उ, हवंति पुहवीपती । ग्राम और गान्धार ग्राम । सूरा संगह कत्तारो, अणेगगणनायगा ॥ (ग्राम शब्द समूह वाची है । संवादी स्वरों का वह धेवयसरमंता उ, हवंति दुहजीविणो । समूह ग्राम है जिसमें श्रुतियां व्यवस्थित रूप में विद्यमान साउणिया वाउरिया, सोयरिया य मुट्ठिया ॥ . हों और जो मूर्छना, तान, वर्ण, क्रम अलंकार इत्यादि नेसायसरमंता उ, हवंति हिंसगा नरा । का आश्रय हो।) जंघाचरा लेहबाहा, हिंडगा भारवाहगा। ६. ग्राम की मूर्च्छनाएं (अनु ३०२।१-७) अण्णोण्णसरविसेसा उप्पायंतस्स मुच्छणा भणिया । षड्ज स्वर कत्ता व मुच्छितो इव कुणते मुच्छ व सोयत्ति ॥ षड्ज स्वर वाले व्यक्ति आजीविका पाते हैं, उनका मंगिमादियाणं इगवीसमुच्छणाणं सरविसेसो पुव्वगते प्रयत्न निष्फल नहीं होता । उनको गाय, पुत्र और मित्रों सरपाहडे भणितो । तविणिग्गतेसु त भरहविसाखिलादिसु की उपलब्धि होती है तथा वे स्त्रियों के प्रिय होते हैं। विष्णेया। (अनुचू पृ ४५) ऋषभ स्वर परस्पर स्वर उत्पन्न करने पर मूछना होती है। ऋषभ स्वर वाले व्यक्ति को ऐश्वर्य, सेनापतित्व, मुर्छना का अर्थ है-सात स्वरों का क्रमपूर्वक आरोहधन, वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्री और स्वजनों की उपलब्धि होती है। अवरोह । इससे गायक मूच्छित जैसा हो जाता है और श्रोता को भी मूच्छित जैसा बना देता है। गान्धार स्वर गान्धार स्वर वाले व्यक्ति गाने में कुशल, चिकित्सा मंगी आदि इक्कीस प्रकार की मूर्च्छनाओं के स्वरों से आजीविका करने वाले, कला में कूशल, कवि, प्राज्ञ की विशद व्याख्या पूर्वगत के 'स्वरप्राभृत' में प्रतिपादित और शास्त्रों के पारगामी होते हैं। थी। वह अब लुप्त हो चुका है । इस समय इनकी जान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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