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सामायिक
१२. सामायिक और संज्ञी - असंज्ञी
भवसिद्धि य जीवो पडिवज्जइ सो चउण्हण्णयरं । डिसेहो पुण असण-मीसए सण्णि पडिवज्जे ।। ( आवनि ८१३) पुणसद्दाओ सण्णी सम्मसुए होज्ज पुव्वपडिवन्नो । मीसो भवत्थकाले सम्मत्त चरितपडिवन्नो || ( विभा २७१३)
भव्य और संज्ञी जीव चारों में से किसी भी सामायिक के प्रतिपत्ता हो सकते हैं। असंज्ञी, नोसंज्ञीनोअसंज्ञी (सिद्ध) और अभव्य ये तीनों किसी भी सामायिक के प्रतिपत्ता या पूर्वप्रतिपन्न नहीं होते ।
_referrera सामायिक से पूर्वप्रतिपन्न होते हैं, किन्तु सम्यक्त्व वर्जित तीन सामायिक संसारी जीवों के ही संभव है । सामायिकत्रय के साहचर्य के कारण सम्यक्त्व सामायिक को भी संसारी जीवों से संबंधित मान कर सिद्धों में उसका निषेध किया गया है।
असंज्ञी जीवों में भी सास्वादन सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक पूर्व प्रतिपन्न होते हैं ।
नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी -- भवस्थ केवली सम्यक्त्व सामायिक और चारित्र सामायिक से पूर्वप्रतिपन्न होते हैं । (देखें - विभामवृ २ पृ १५३)
आहारक- पर्याप्तक
आहारओ उ जीवो पडिवज्जइ सो चउण्हमण्णयरं । एमेव य पज्जत्तो सम्मत्तसुए सिया इयरो | ( आवनि ८१५) goraण्णोऽणाहारगो दुगं सो भवंतरालम्मि । चरणं सेलेसाइसु इयरो त्ति दुगं अपज्जत्तो ॥ (विभा २७१८ ) • आहारक और पर्याप्तक जीव चारों में से कोई भी सामायिक प्राप्त कर सकते हैं। पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा चारों सामायिक हो सकते हैं ।
• अन्तरालगति के समय अनाहारक अवस्था में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा सम्यक्त्व और श्रुत दो सामायिक हो सकते हैं ।
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सामायिक : संज्ञी - असंज्ञी आदि
अवस्था में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा सम्यक्त्व और चारित्र सामायिक होते हैं ।
• अपर्याप्त अवस्था में पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक हो सकते हैं ।
संस्थान, संहनन, अवगाहना
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सव्वेवि संठाणेसु लहइ एमेव सव्वसंघयणे । उक्कोसजणं वज्जिऊण माणं लहे मणुओ ॥
( आवनि ८२१) सभी संस्थानों और सहननों में पूर्वप्रतिपन्नता और प्राप्ति की अपेक्षा चारों सामायिक हो सकते हैं ।
उत्कृष्ट और जघन्य भवगाहना को छोड़कर मध्यम अवगाहना वाले गर्भज मनुष्य में पूर्व प्रतिपन्नता और प्राप्ति की अपेक्षा चारो सामायिक हो सकते हैं ।
न जहन्नोगाहणओ पवज्जए, दोण्णि होज्ज पडिवन्नो । कोसोगा हणगो दुहाfव दो तिन्नि उतिरिक्खो || ( विभा २७३९ ) जघन्य अवगाहना वाले गर्भज मनुष्य और तिर्यञ्च की अपेक्षा प्रथम दो सामायिक हो सकते हैं । उत्कृष्ट कोई भी सामायिक प्राप्त नहीं कर सकते । पूर्वप्रतिपन्न अवगाहना वाले मनुष्य और तिर्यञ्च में पूर्वप्रतिपन्नता और प्राप्ति की अपेक्षा प्रथम दो सामायिक हो सकते हैं । मध्यम अवगाहना वाले तिर्यञ्च प्रथम तीन सामायिक के प्रतिपत्ता हो सकते हैं ।
आयुष्य
संखेज्जाऊ चउरो भयणा सम्मसुए संखवासाणं ।'''' ( विभा २७२७ ) संख्येय वर्ष की आयु वाले जीव चारों ही सामायिक के प्रतिपत्ता हो सकते हैं ।
असंख्येय वर्ष की आयु वाले जीवों में सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक वैकल्पिक है । चार गति
उसु विगईसु नियमा सम्मत्त सुयस्स होइ पडिवत्ती । मणुसु होइ विरई विरयाविरई य तिरिएसु ॥ ( आवनि ८१२ ) नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-इन चारों गतियों में नियम से सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक के
• केवली समुद्घात की अनाहारक अवस्था तथा शैलेशी प्रतिपत्ता होते हैं । सर्वविरति सामायिक के प्रतिपत्ता
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