Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 731
________________ सामाचारी ६८६ दशविध सामाचारी सामाचारी-मुनि का संघीय व्यवहार । अन्तर्भाव धर्मकथानुयोग में होता है। पदविभाग सामा चारी का अन्तर्भाव छेदसूत्र (चरणानुयोग) में होता है । १. सामाचारी का अर्थ २. सामाचारी के प्रकार ३. दशविध सामाचारी ३. दशविध सामाचारी पढमा आवस्सिया नाम, बिइया य निसीहिया । ४. सामाचारी का महत्त्व आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ।। पंचमा छंदणा नाम, इच्छाकारो य छट्ठओ। १. सामाचारी का अर्थ सत्तमो मिच्छकरो य, तहक्कारो य अट्ठमो॥ यतिजनेतिकर्तव्यतारूपा सामाचारी। अन्भट्ठाणं नवमं, दसमा उवसंपदा । (उशाव प ५३३) एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ।। मुनियों का पारस्परिक संघीय व्यवहार सामाचारी (उ २६॥२-४) सामाचारी के दस प्रकार हैं२. सामाचारी के प्रकार १. आवश्यकी ६. इच्छाकार .."सामायारी तिविहा ओहे दसहा पयविभागे ॥ २. नषेधिकी ७. मिथ्याकार ओघसामाचारी सामान्यतः संक्षेपाभिधानरूपा, सा ३. आप्रच्छना ८. तथाकार चोधनियुक्तिरिति । दशविधसामाचारी इच्छाकारादि- ४. प्रतिप्रच्छना ९. अभ्युत्थान लक्षणा । पदविभागसामाचारी छेदसूत्राणि । ५. छन्दना १०. उपसम्पदा। ____तत्रौघसामाचारी नवमात्पूर्वात् तृतीयाद्वस्तुन आचा आवश्यकी सामाचारी राभिधानात् तत्रापि विंशतितमात्प्राभृतात्, तत्राप्योध गमणे आवस्सियं कुज्जा।" (उ २६१५) प्राभूतप्राभृतात् नियूं ढेति,""""दशविधसामाचारी पुनः स्थान से बाहर जाते समय 'आवश्यकी' शब्द का षड्विंशतितमादुत्तराध्ययनात् स्वल्पतरकालप्रवजितपरि उच्चारण करे। ज्ञानार्थं नियंढेति, पदविभागसामाचार्यपि छेदसूत्र गमने तथाविधालम्बनतो बहिनि:सरणे आवश्यकेषलक्षणान्नवमपूर्वादेव नियूंढा । (आवनि ६६५ हावृ पृ १७२) अशेषावश्यकर्त्तव्यव्यापारेषु सत्सु भवाऽऽवश्यकी। सामाचारी के तीन प्रकार हैं (उशावृ प ५३४) आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाना आवश्यकी है। १. ओघ सामाचारी-ओघनियुक्ति । 'आवश्यकी'--मैं आवश्यक कार्य के लिए स्थान या २. दशधा सामाचारी-इच्छाकार आदि दश प्रकार निषद्या से बाहर जा रहा हैं"-इस उच्चारण के द्वारा ___ की सामाचारी। अपने जाने की सूचना देना आवश्यकी सामाचारी है। ३ पदविभाग सामाचारी-- छेदसूत्र । ओघनियुक्ति नौवें प्रत्याख्यान पूर्व की तीसरी नषेधिको सामाचारी आचार वस्तु के बीसवें प्राभूत के ओघप्राभूतप्राभूत .""ठाणे कुज्जा निसीहियं ।' से निर्यढ है। शैक्ष मुनियो के अवबोध के लिए दशविध यत्रास्पदे स्थेयं तत्र नैषेधिकीपूर्वकमेव प्रवेष्टव्यम् । सामाचारी उत्तराध्ययन के छब्बीसवें अध्ययन से तथा (उ २६१५ शावृ प ५३४) पदविभाग सामाचारी (छेद सूत्र) प्रत्याख्यान पूर्व से स्थान में प्रवेश करते समय नषेधिकी करे-'नषेनिर्यढ है। धिकी' का उच्चारण करे। सामाचारी दशविधा, ओघरूपा पदविभागात्मिका निसीहि नाम सरीरगं वसही थंडिलं च भण्णति । चेह नोक्ता, धर्मकथाऽनुयोगत्वादस्य, छेदसूत्रान्तर्गतत्वाच्च जतो निसीहिता नाम आलयो वसही थंडिलं च । सरीरं तस्याः । (उशाव प ५४७) जीवस्स आलयोत्ति । तथा पडिसिद्धनिसेवणनियत्तस्स ओघ सामाचारी और दशविध सामाचारी का किरिया निसीहिया। (आवचू २ पृ ४६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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