Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
View full book text
________________
परिशिष्ट १
१६५
अच्छिनिमीलणमेत्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्ध। नरए नेरइयाणं, अहोनिसिं पच्चमाणाणं।।१६७॥ तत्थ य सम्मादिट्ठी, पायं चिंतंति वेयणाऽभिहया। मोत्तुं कम्माइ तुमं, मा रूससु जीव ! जं भणियं॥१६८॥ सव्वो पुव्वकयाणं, कम्माणं पावए फलविवागं। अवराहेसु गुणेसु य, निमित्तमेत्तं परो होइ॥१६९॥ धारिज्जइ एंतो जलनिही वि कल्लोलभिन्नकुलसेलो। न हु अन्नजम्मनिम्मियसुहासुहो देव्वपरिणामो॥१७०॥ अकयं को परिभंजइ ?, सकयं नासेज्ज कस्स किर कम्मं ?। सकयमणु/जमाणे, कीस जणो दम्मणो होइ ?॥१७१॥ दुप्पत्थिओ अमित्तं, अप्पा सुप्पत्थिओ हवइ मित्तं। सुहदुक्खकारणाओ, अप्पा मित्तं अमित्तं वा॥१७२॥ वारिज्जंतो वि हु गुरुयणेण तइया करेसि पावाइं। सयमेव किणियदक्खो, रूससि रे जीव ! कस्सिण्डिं ?॥१७३॥ सत्तमियाओ अन्ना, अट्ठमिया नत्थि निरयपुढवि त्ति। एमाइ कुणसि कूडुत्तराई इण्हिं किमुव्वयसि ?॥१७४॥ इय चिंताए बहुवेयणाहिं खविऊण असुहकम्माइं। जायंति रायभुवणाइएसु कमसो य सिझंति॥१७५॥ अन्ने अवरोप्परकलहभावओ तह य कोवकरणेणं। पावंति तिरियभावं, भमंति तत्तो भवमणंत॥१७६॥ पाणिवहेणं भीमो, कुणिमाहारेण कुंजरनरिंदो। आरंभेहि य अघलो, नरयगईए उदाहरणा॥१७७॥ एवं संखेवेणं, निरयगई वन्निया तओ जीवा। पाएण होति तिरिया, तिरियगई तेणऽओ वोच्छं।१७८॥ एगिंदियविगलिंदियपंचिं(चें)दियभेयओ तहिं जीवा। परमत्थओ य तेसिं, सरूवमेवं विभावेज्जा॥१७९॥ पुढवी फोडणसंचिणणहलमलणखणणाइदुत्थिया निच्चं। नीरं पि पियणतावणघोलणसोसाइकयदुक्खं॥१८०॥

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248