Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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परिशिष्ट १
१७३
उल्लसइ भमइ कुक्कुयइ कीलइ जंपइ बहं असंबद्ध। धावइ निरत्थयं पि हु, निहणंतो भूयसंघायं॥२७९॥ इय असमंजसचेट्ठियअन्नाणऽविवेयकुलहरं गमियं। जीवेणं बालत्तं, पावसयाइं कुणंतेण॥२८०॥ बालस्स वि तिव्वाइं, दुहाई दट्टण निययतणयस्स। बलसारपुहइवालो, निव्विन्नो भवनिवासस्स॥२८१॥ तरुणत्तणम्मि पत्तस्स धावए दविणमेलणपिवासा। सा का वि जीई न गणइ देवं धम्मं गुरुं तत्त॥२८२॥ तो मिलइ कह वि अत्थे, जइ तो मुज्झइ तयं पि पालंतो। बीहेइ राइतक्करअंसहराईण निच्चं पि॥२८३॥ वड्ढ़ते उण अत्थे, इच्छा वि कह वि तह दूरं। जह मम्मणवणिओ इव, संतेऽवि धणे दुही होइ॥२८४॥ लद्धं पि धणं भोत्तुं, न पावए वाहिविहुरिओ अन्नो। पत्थोसहाइनिरओ, त्ति केवलं नियइ नयणेहि।।२८५॥ जइ पुण होइ न पुत्तो, अहवा जाओ वि होइ दुस्सीलो। तो तह झिज्झइ अंगे, जह कहिउं केवली तरइ॥२८६॥ अन्ने उण संजुत्ता, रत्तुप्पलपत्तकोमलतलेहि। सोणनहसयललक्खणलक्खियकुम्मुन्नयपएहिं।।२८७॥ सुसिलिट्ठगूढगुप्फा, एणीजंघा गइंदहत्थोरू। हरिकडियला पयाहिणसुरसलिलावत्तनाभीया॥२८८॥ वरवइरवलियमज्झा, उन्नयकुच्छी सिलिट्ठमीणुयरा। कणयसिलायलवच्छा, पुरगोउरपरिहभुयदंडा॥२८९॥ वरवसहुन्नयखंधा, चउरंगुलकंबुगीवकलिया य। सद्दलहणू बिंबीफलाहरा ससिसमकवोला॥२९०॥ कुंददलधवलदसणा, विहगाहिवचंचुसरलसमनासा। पउमदलदीहनयणा, अणंगधणुकुडिलभूलेहा॥२९१॥ रइरमणंदोलयसरिससवण अद्धिंदुपडिमभालयला। भरहाहिवछत्तसिरा, कज्जलघणकसिणमिउकेसा॥२९२॥

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