Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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परिशिष्ट २
मूलगाथार्धाकारादिक्रमः
अंगारसूरिपमुहा, लहंति करहत्तणं बहुसो । अंगुल असंखभागो, तेसि सरीरं तहिं हवइ पढमं। अंतब्भवंति ताओ, एयासु विताओ पुण एवं। अंताइ दोन्नि इहइं, पत्तेयं पंच पंच वामाओ। अंतो चउरंसाई, उप्पलकन्नियनिभा हेट्ठा। अंतोमुहुत्तमज्झे, संपुन्नो जायए एसो। अंतोमुहुत्तमेत्तेण जायए तं पि हु महल्लं। अंबाईणऽसुराणं, एत्तो साहेमि वावारं। अंबे अंबरिसी चेव सामे य सबले त्ति य। अइकढिणवज्जकुड्डा, होंति समंतेण तेसु नरएसु।
अइकरुणं कंदंता, पप्पडपिट्टं व कीरंति। अइदुसहं दुक्खमिणं, पसियह मा कुणह एत्ताहे। अइबलिणो वि कसाया, कसिणभुयंग व्व मंतेहिं। अइरत्तो वि य तासिं, मारसि भत्तारपमुहे य। अइलोभेण विणस्सइ, मच्छो व्व जहा गलं गिलिउं । अइविस्सरं रसंतो, जोणीजंताओ कह वि णिप्फिडइ। अकयं को परिभुंजइ ?, सकयं नासेज्ज कस्स किर कम्मं ?। अगणिवरिसं कुणंते, मेहे वेउव्वियम्मि नेरइया। अगणी खोट्टणचूरणजलाइसत्थेहिं दुत्थियसरीरो। अच्छिनिमीलणमेत्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं।
अच्छी खुड्डंति सिरं, हणंति चुंटंति मंसाइं। अच्छीओ दो पलाइ, सिरं च भणियं चउकवालं। अज्ज घरे नत्थि घयं, तेल्लं लोणं वा इंधणं वत्थं।
अज्ज वि य सरागाणं, मोहविमूढाण कम्मवसगाणं। अट्टवसट्टोवगमेण देहघरसयणचिंताहिं।
अट्ठसयं पडिमाणं, सिद्धाययणे तहेव सगहाओ।
२०१ उ.
९३ पू.
३१५ उ.
४०९ पू.
३२८ उ.
३५१ उ.
९३ उ.
१०२ उ.
९७ पू.
९० पू.
१५६ उ.
१२३ उ.
४४६ उ.
१३५ उ.
४३७ उ.
२७३ पू.
१७१ पू.
१५५ पू.
१८१ पू.
१६७ पू.
१५४ उ.
४०७ उ.
३०२ पू.
३९६ पू.
२४८ उ.
३५७ पू.

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