Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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२००
भवभावना
२४९ पू.
६२ पू.
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४३१ पू. ५८ उ.
५९ उ.
४२१ पू.
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कूडक्कयकरणेणं, अणंतसो नियडिनडियचित्तेहिं। कूडक्कयपरवंचणवीससियवहा य जाण कज्जम्मि। केवलदुहनिम्मविए, पडिओ संसारसायरे जीवो। को कस्स जए सयणो ?, को कस्स परजणो एत्थ ?। को कस्स दुहं गिण्हइ ?, मयं च को कं नियत्तेइ ?। को कायसुणयभक्खे, किमिकुलवासे य वाहिखित्ते य। को केण समं जायइ ?, को केण समं परं भवं वयइ ?। को जाणइ पुणरुत्तं, होही कइया वि धम्मसामग्गी ?। को ताण अणाहाणं, रन्ने तिरियाण वाहिविहुराणं। को निज्जरं तुलेज्जा, चरणम्मि परक्कमंताणं ?। को सरणं परिचिंतस, एक्कं मोत्तण जिणधम्म। को होज्ज सरीरम्मि वि, सुइवाओ मुणियतत्ताणं ?। कोडीओ सत्त बावत्तरीए लक्खेहिं अहियाओ। कोसंबिपुरीराया, न रक्खिओ तह वि रोगाणं। कोहम्मि सूरविप्पो, मयम्मि आहरणमज्झियकमारो। खणदिट्ठनट्ठरूवं, तह जाणसु विहवमाईयं। खणमेगं हरिसिज्जंति, पाणिणो पुण विसीयंती। खद्धाइं जं अणज्जेहिं पसुभवे किं न तं सरसि ?। खरचरणचवेडाहि य, चंचुपहारेहिं निहणमुवणेतो। खरस्सरे महाघोसे पनरस परमाहम्मिया। खावंति मंसखंडाणि नारए तत्थ महकाला। खित्ताईणि वि एवं, दुलहाई वण्णियाइं समयम्मि। खित्तो गोत्तीइ व पंजरट्ठिओ हंत कीरत्ते। खिवइ कर जलम्मि वि, पक्खिवइ मुहम्मि कसिणभुयगं पि। खिवइ सुरो तो खिप्पं, वच्चइ विलयं अपत्तो वि। खेत्ताणुभावजणिया, इय तिविहा वेयणा नरए। खेलखरंटियवयणो, मुत्तपुरीसाणुलित्तसव्वंगो। खोल्लगभवगहणाऊ, एएसु निगोयजीवेसु। गंडयललिहंतमहंतकुंडला कंठनिहियवणमाला।
४९९ पू. २४६ पू. ५०२ उ
४३ उ. ४०४ उ. ३२७ उ.
३१ उ. ४३८ पू १७ उ. १५ उ २०२ उ २३६ पू. ९८उ.
११० उ.
४७१ पू.
२३९ उ. २७८ पू.
८८ उ.
१६४ उ
२७७ प.
१८४ उ. ३७६ पू

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